वर्ल्ड बैंक की ग्लोबल इकोनॉमिक प्रॉस्पेक्टस रिपोर्ट के मुताबिक़, 2020 में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पिछले 42 वर्षों में सबसे ख़राब रही है. गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफ़सी) से पैदा हुई क्रेडिट कमज़ोरी गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक है.
इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था बुरे दौर से गुज़र रही है. नए साल के बमुश्किल 13 दिन बीते हैं, लेकिन अर्थव्यवस्था के लिए लगातार बुरी ख़बरें आती जा रही हैं. इन ख़बरों से तो यही लग रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन अभी काफ़ी दूर हैं.
विश्व बैंक ने 9 जनवरी को वित्त वर्ष 2019-20 के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर का अनुमान 6.5 फ़ीसदी से घटाकर 5 फ़ीसदी कर दिया है. 5 फ़ीसदी की विकास दर का अनुमान पिछले 11 वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विश्व बैंक का सबसे ख़राब अनुमान है.
SBI ने 5 से घटाकर 4.6 फीसदी कर दिया था
हालांकि, विश्व बैंक से पहले भारत के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी विकास दर का अनुमान 5 फ़ीसदी से घटाकर 4.6 फ़ीसदी कर दिया था.
जबकि तीसरी बुरी ख़बर इसी साल केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) की ओर से आई थी. CSO ने 7 जनवरी को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चालू वित्त वर्ष 2019-20 में भारतीय अर्थव्यवस्था की जीडीपी ग्रोथ 5 फ़ीसदी रह सकती है, साल 2011-12 में भी जीडीपी ग्रोथ इतनी ही थी.
अगर पिछले साल की शुरुआत से तुलना करें तो उस दौरान सभी रेटिंग एजेंसियों और वित्तीय संस्थानों के अनुमान बेहद सकारात्मक थे जो कि अब बेहद निराशाजनक हैं.
ख़स्ताहाल जीडीपी के चलते मोदी सरकार को लगातार विपक्ष के विरोध का सामना करना पड़ रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बजट पेश होने से पहले नीति आयोग के बड़े अर्थशास्त्रियों और विशेषज्ञों से मुलाक़ात की है.