नहीं रहे 1965 युद्ध के हीरो एयर फ़ोर्स के पूर्व चीफ़ अर्जन सिंह, 98 वर्ष की उम्र में हुआ देहांत

Sumit Gaur

भारतीय सेना का हर जवान अपने आप में किसी बम के गोले से कम नहीं है, पर इन सब में पूर्व एयर फ़ोर्स मार्शल अर्जन सिंह किसी मिसाइल की तरह थे, जिन्होंने 1965 हिन्द-पाक की लड़ाई के समय इंडियन एयर फ़ोर्स की कमान संभालते हुए पाकिस्तानियों के परखच्चे उड़ा दिए थे.

वो इंडियन एयर फ़ोर्स के एकलौते ऐसे मार्शल हुए हैं, जिनकी वर्दी पर आर्मी के फ़ील्ड मार्शल की तरह 5 स्टार्स चमकते थे. अर्जन सिंह उन पायलट्स में से एक थे, जो बिना किसी डर के 60 से ज़्यादा एयरक्राफ्ट चलाना जानते थे. उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप आज इंडियन एयर फ़ोर्स की पहचान दुनिया की चौथी सबसे बड़ी सेना के रूप में होती है.

इंडियन एयर फ़ोर्स के पूर्व वाईस चीफ़ कपिल काक का कहना है कि ‘अर्जन सिंह के नेतृत्व में ही एयर फ़ोर्स का विकास हुआ. वो एयर फ़ोर्स में आर्मी नेतृत्व के प्रतीक थे. ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि उन्हें 5 स्टार्स से सम्मानित किया गया था.’ 

2002 में हुए रिपब्लिक डे वाले दिन अर्जन सिंह को इस उपाधि से सम्मानित किया गया था. इससे पहले जमशेदजी मानेकशॉ और K M Cariappa केवल दो आर्मी जनरल को इस सम्मान से सम्मानित किया गया है.

अर्जन सिंह के बारे में कहा जाता था कि वो सिर्फ़ निडर ही नहीं, बल्कि ऐसे पायलट भी थे, जो एयर फ़ोर्स की ताक़त को समझते थे. वो इस ताक़त को अच्छे से इस्तेमाल करना भी जानते थे. 1965 की लड़ाई के समय पाकिस्तान को अमेरिकन एयर फ़ोर्स मिलने के बावजूद अर्जन सिंह की रणनीतियों और नेतृत्व की वजह से ही भारत इस युद्ध को जीतने में कामयाब रहा था.

अर्जन सिंह के योगदान को देखते हुए तत्कालीन रक्षा मंत्री Y B Chavan ने लिखा था कि ‘एयर मार्शल अर्जन सिंह एक बहुमूल्य रत्न थे, जिनके नेतृत्व की काबिलियत उन्हें एक अच्छा लीडर बनाती है.’ अर्जन सिंह पहले ऐसे भारतीय पायलट थे, जिन्हें Distinguished Flying Cross (DFC) की तरफ़ से साउथ ईस्ट एशिया का सुप्रीम अलाइड कमांडर के अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.

15 अप्रैल 1919 को पाकिस्तान के लयालपुर (आज का फ़ैसलाबाद) में पैदा हुए थे, जबकि उन्होंने अपनी शिक्षा साहीवाल में पूरी की थी. 1938 में 19 साल की उम्र में सिंह का चयन रॉयल एयर फ़ोर्स के एम्पायर पायलट ट्रेनिंग कोर्स के लिए हो गया था. अर्जन सिंह 1969 में अपनी सेवाओं से रिटायर्ड हुए थे. अर्जन सिंह की पहली पोस्टिंग नॉर्थ-वेस्टर्न फ्रंटियर प्रोविंस के Westland Wapiti Biplanes में RIAF स्क्वाड्रन के रूप में हुई थी. 1944 में में अर्जन का प्रमोशन स्क्वाड्रन लीडर के रूप में हुआ था.

विंग कमांडर के रूप में प्रमोशन होने के बाद वो रॉयल स्टॉफ़ कॉलेज चले गए थे, पर जैसे ही आज़ाद भारत की ख़बर उन तक पहुंची, वो हिंदुस्तान लौट आये, जिसके बाद उन्होंने अंबाला के एयर फ़ोर्स स्टेशन में ग्रुप कैप्टेन की कमान संभाली.15 अगस्त 1947 के दिन अर्जन सिंह ने 100 से ज़्यादा एयरक्राफ्ट्स के साथ दिल्ली के लाल किले के ऊपर से उड़ान भर कर आज़ादी के दिन को खास बनाया था.

1949 में भारत सरकार ने अर्जन सिंह का प्रमोशन एयर कमोडोर के रूप में किया गया, जिसके उन्होंने एयर ऑफ़िसर कमांडिंग का पद संभाला, जिसे आज वेस्टर्न एयर कमांड के रूप में पहचाना जाता है.

1962 में अर्जन सिंह एयर फ़ोर्स स्टाफ़ के डिप्टी चीफ़ बने. 1963 के समय उन्होंने रॉयल एयर फ़ोर्स और रॉयल ऑस्ट्रेलियन एयर फ़ोर्सकमांडर के बीच हुए जॉइंट एयर ट्रेनिंग ‘शिक्षा’ का नेतृत्व किया. 1 अगस्त 1964 में अर्जन सिंह को एयर फ़ोर्स का एयर मार्शल नियुक्त किया गया, जिस समय अर्जन सिंह ने मार्शल का कार्यभार संभाला, उस समय इंडियन एयर फ़ोर्स नई चुनौतियों का सामना कर रही थी. अर्जन सिंह ने इन चुनौतियों को स्वीकार किया और एयर फ़ोर्स को खुद के पैरों पर खड़ा किया.

अर्जन सिंह के योगदान को देखते हुए 1969 में उन्हें स्विट्जरलैंड में भारत का एंबेसडर नियुक्त किया गया था. 1989 से ले कर 1990 तक वो दिल्ली के गवर्नर भी रह चुके हैं. शनिवार को दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां 98 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.

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