भारतीय सेना में होते हैं ये रैंक, तो पढ़ लो और सेना के बारे में ज्ञान बढ़ा लो

Sanchita Pathak

भारतीय सेना विश्व की तीसरी सबसे बड़ी सेना है. 13,25,000 से ज़्यादा एक्टिव ट्रूप्स और 21,43,000 से ज़्यादा रिज़र्व ट्रूप्स देश को सुरक्षा में 24 घंटे तैनात रहते हैं. सेना आपदाओं में भी सिविलियन्स की मदद करती है. भारतीय सैन्य बल में भर्ती होने वाले हर एक जवान का ओहदा अपने आप ही बढ़ जाता है.


भारती सैन्य बल तीन सेनाओं में बंटा है- थल सेना, जल सेना और वायु सेना.   

सैन्य बलों और जवानों के कई क़िस्से आपने सुने और सुनाए होंगे, आज हम आपको थल सेना के रैंक्स के बारे में बताने जा रहे हैं. 

भारतीय सेना में रैंक्स की तीन श्रेणी है: 

1.कमिशन्ड ऑफ़िसर
2.जूनियर कमिशन्ड ऑफ़िसर
3.अन्य रैंक (नॉन कमिशन्ड ऑफ़िसर और सैनिक)

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1. कमिशन्ड ऑफ़िसर 

फ़ील्ड मार्शल 

ये भारतीय सेना का उच्चतम रैंक है. स्वाधीन भारत के इतिहास में 2 ऑफ़िसर, फ़ील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ और फ़ील्ड मार्शल के.एम.करियप्पा को ये रैंक मिला. ये रैंक ऑफ़िसर को आजीवन के लिए दिया जाता है. 

जनरल 
किसी भारतीय अफ़सर को मिलने वाला उच्चतम रैंक, ये रैंक सिर्फ़ चीफ़ ऑफ़ आर्मी स्टाफ़ को मिलता है और ये कैबिनेट सेक्रेटरी ऑफ़ इंडिया के समानांतर है. 

लेफ़्टिनेंट जनरल
36 वर्षों के कमिशन्ड सर्विस के बाद ये रैंक सेलेक्शन प्रोसेस के आधार पर दिया जाता है. लेफ़्टिनेंट जनरल आर्मी स्टाफ़ का वाइस चीफ़ हो सकता है.

मेजर जनरल
32 साल के कमिशन्ड सर्विस के बाद सेलेक्शन प्रोसेस के आधार पर मेजर जनरल चुना जाता है.

ब्रिगेडियर
25 साल के कमिशन्ड सर्विस के बाद सेलेक्शन प्रोसेस से गुज़र कर किसी ऑफ़िसर को ब्रिगेडियर रैंक दी जाती है.

कर्नल
15 साल के कमिशन्ड सर्विस के बाद कोई ऑफ़िसर सेलेक्शन प्रोसेस का हिस्सा बन सकता है.

लेफ़्टिनेंट कर्नल
13 साल के कमिशन्ड सर्विस के बाद ये रैंक मिलता है और इसके लिए पार्ट डी परीक्षा पास करनी पड़ती है.

मेजर
6 साल के कमिशन्ड सर्विस और पार्ट बी परीक्षा पास करने पर ये रैंक मिलती है.

कैप्टन
2 साल के कमिशन्ड सर्विस के बाद ये रैंक मिलती है और कुछ ऐन्ट्रीज़ को 1 साल की सर्विस के बाद ही मिल जाता है.

लेफ़्टिनेंट
अकैडमी से फ़ोर्स में कमिशन्ड होने के बाद ये रैंक मिलती है. पहले सेकेंड लेफ़्टिनेंट रैंक भी दिया जाता था पर अब वो हटा दिया गया है. 

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2. जूनियर कमिशन्ड ऑफ़िसर 

सूबेदार मेजर

सेलेक्शन प्रोसेस के बाद किसी को ये रैंक मिलती है. एक बटालियन का सूबेदार मेजर कमांडर को असिस्ट करता है.

सूबेदार 
ये रैंक प्रमोशन होने पर मिलती है. इस रैंक को ईस्ट इंडिया कंपनी ने शुरू किया था.

नाएब सूबेदार 
ये रैंक प्रमोशन होने पर मिलती है. जेसीओ रैंक के जवानों को राष्ट्रपति से कमिशन मिलता है.

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3. अन्य रैंक (नॉन कमिशन्ड ऑफ़िसर और सैनिक) 

हवलदार 

ऐतिहासिक पहलू पर ग़ौर करें तो पहले हवलदार सीनियर कमांडर हुआ करते थे जिन्हें मुग़लों के ज़माने में क़िले की ज़िम्मेदारी दी जाती थी. ब्रिटिश राज में हवलदार का और सार्जेंट का ओहदा एक बराबर था.

नायक 
ये रैंक ब्रिटिश सेना और कैमल कॉर्प्स इस्तेमाल करते थे. लांस नायक और हवलदार के बीच की रैंक.  

ये लेख लिखने में यहां से मदद ली गई है.  

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