न जाने कहां खो गया वो समय, जब हम डाकिए का इंतज़ार करते थे और उसके आते ही ख़ुश हो जाते थे

Bikram Singh

एक समय था जब पोस्टमैन को देखते ही हम उसकी साइकिल के पीछे-पीछे दौड़ कर भागने लगते थे. हमें लगता था कि उसके पास हमारी कोई चिट्ठी होगी. सोचिए, उन दिनों पोस्टमैन का कितना महत्व रहता था. हालांकि, अब पूरी दुनिया हाइटेक होती जा रही है. आज भले ही चिट्ठियों के आने का सिलसिला कम हो गया हो, लेकिन डाक विभाग की प्रासंगिकता अब भी बरकरार है. डाकघर यानि पोस्ट ऑफिस हमारे लिए बहुत ही ज़रुरी है. बिना इसके हम सूचनाओं का आदान-प्रदान नहीं कर सकते थे. आइए, आज आपको हम डाकघर के बारे में कुछ जानकारी देते हैं.

यूं तो डाकघर से जुड़ी कई कहानियां हैं, मगर सभी कहानियों का ज़िक्र कर पाना थोड़ा मुश्किल है. हां, कुछ महत्वपूर्ण और मज़ेदार कहानियों को ज़रुर बताया जा सकता है. पुराने दिनों में चिट्ठी भेजने के लिए सेवक होते थे, जिन्हें राजा का दूत कहा जाता था. मुगलों के समय में ऐसे लोगों को ‘हरकारा’ कहा जाता था. अंग्रेज़ों के समय में इन्हें पोस्टमैन कहा जाने लगा. नाम भले ही कुछ हो, मगर इनका काम लोगों तक संदेश पहुंचाना था.

इसी बात को ध्यान में रखते कई देशों ने पोस्ट केंद्र बनाने की ठानी, जहां आम लोगों की चिट्ठियों को उनके सगे-संबंधियों तक पहुंचाया जा सके. वर्ष 1874 में इसी दिन यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन (यूपीयू) का गठन करने के लिए स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किया था. पूरी दुनिया के लिए वो एक ऐतिहासिक फ़ैसला था. जानकारी के लिए बता दूं कि यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत पहला एशियाई देश था.

b’Source: India Post’

भारत इसका सदस्य एक जुलाई, 1876 को बना था. कई दशकों तक देश के अंदर ही नहीं, बल्कि एक देश से दूसरे देश तक सूचना पहुंचाने का सर्वाधिक विश्वसनीय, सुगम और सस्ता साधन डाक रहा है, लेकिन इस क्षेत्र में निजी कम्पनियों के बढ़ते दबदबे और फिर सूचना तकनीक के नये माध्यमों के प्रसार के कारण डाक विभाग की भूमिका लगातार कम होती गयी है. वैसे इसकी प्रासंगिकता पूरी दुनिया में अब भी बरकरार है, लेकिन डाक विभाग का एकाधिकार लगभग ख़त्म हो गया है.

b’Source: Bihar Times’

पहले डाक का काम सिर्फ़ सूचनाओं का आदान-प्रदान करना था, मगर समय की मांग को देखते हुए डाक ने अपने काम को और विस्तार किया है. डाकघर का इस्तेमाल निम्न कामों के लिए भी किया जाता है.

भारतीय डाक का इतिहास इससे भी बड़ा है, जिनको एक आर्टिकल में लिख पाना बहुत ही मुश्किल है. उम्मीद है कि आपको ये आर्टिकल अच्छा लगा होगा. आप इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर भी कर सकते हैं.

डाकघर एक सुविधा है, जो पत्रों को जमा करने छांटने, पहुंचाने आदि का कार्य करती है. यह एक डाक व्यवस्था के तहत काम करता है. लगभग 500 साल पुरानी ‘भारतीय डाक प्रणाली’ आज दुनिया की सबसे विश्वसनीय और बेहतर डाक प्रणाली में अव्वल स्थान पर है. आज भी हमारे यहां हर साल क़रीब 900 करोड़ चिठियों को भारतीय डाक द्वारा दरवाज़े – दरवाज़े तक पहुंचाया जाता है.

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