भारतीय शोधकर्ताओं ने खोज निकाला ‘प्लास्टिक खाने वाला बैक्टीरिया’, प्लास्टिक का ख़ात्मा होगा?

Maahi

बड़े पैमाने पर प्लास्टिक से फैल रही बीमारियों के चलते भारत में वन-टाइम यूज़ प्लास्टिक को पूरी तरह से बैन कर दिया गया है. बाज़ारों से पॉलीबैग्स लगभग गायब हो गए हैं. इसमें कामयाबी मिलती भी दिख रही है. 

अब प्लास्टिक को लेकर भारतीय शोधकर्ताओं ने एक अच्छी ख़बर दी है. दरअसल, शोधकर्ताओं ने ‘प्लास्टिक खाने वाले’ बैक्टीरिया का पता लगाया है. भारतीय शोधकर्ताओं की ये खोज दुनियाभर में प्लास्टिक कचरे से फ़ैलने वाले प्रदूषण के निस्तारण के लिए एक महत्वपूर्ण रिसर्च साबित हो सकती है. 

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ग्रेटर नोएडा स्थित ‘शिव नाडर यूनिवर्सिटी’ के कुछ शोधकर्ताओं द्वारा खोजे गए इन बैक्टीरिया में पॉलिस्टरीन को ख़त्म करने की क्षमता पाई गई है. शोधकर्ताओं ने इनकी पहचान विश्वविद्यालय से लगी दलदली भूमि से की है. 

दरअसल, पॉलिस्टरीन मूल रूप से सिंगल यूज़ वाले प्लास्टिक के सामान जैसे डिस्पोजेबल कप, प्लेट, खिलौने, पैकिंग में इस्तेमाल होने वाली सामग्री आदि को बनाने में इस्तेमाल होता है. 

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इस दौरान शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि विभिन्न क्षेत्रों में पॉलिस्टरीन का उत्पादन और खपत पर्यावरण के लिये बड़ा खतरा है. इसीलिए ये कचरा प्रबंधन के लिए भी समस्या पैदा कर रहा है. 

रॉयल सोसाइटी ऑफ़ कमेस्ट्री (आरएससी) एडवांसेज़ नाम के जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक़, अपने उच्च आणविक भार और लंबी कड़ी वाले पॉलीमर संरचना की वजह से पॉलिस्टरीन को नष्ट करना कठिन होता है. यही वजह है कि ये पर्यावरण में लंबे समय तक बना रहता है. 

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‘शिव नाडर यूनिवर्सिटी’ की एसोसिएट प्रोफ़ेसर, रिचा प्रियदर्शिनी का कहना है कि, ‘हमारे आंकड़े इस तथ्य की पुष्टि करते हैं कि बैक्टीरियम एक्सिगुओबैक्टीरियम पॉलिस्टरीन को नष्ट करने में सक्षम है और प्लास्टिक से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिये इनका इस्तेमाल किया जा सकता है’. 

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शोधकर्ताओं की इस टीम में प्रियदर्शिनी के साथ ‘स्कूल ऑफ़ नेचुरल साइंसेज़’ के डिपार्टमेंट ऑफ़ लाइफ़ साइंसेज़ का एक दल भी था. 

भारत में हर साल अनुमानित 1.65 करोड़ मीट्रिक टन प्लास्टिक की खपत होती है. 

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