नोएडा से बुर्ज ख़लीफ़ा और एफ़िल टावर तक देख रहे भारतीय, प्रदूषण कम हो गया लेकिन तफ़री नहीं

Abhay Sinha

दुनिया के पहले इश्क़ की शुरुआत झूठ से शुरु हुई थी. प्रेमिका को चांद-तारे तोड़कर लाने की बातें कर प्रेमी ने उसे फ़ंसाया था. हालांकि, मैं से इस बात से सहमत नहीं हूं. पहला प्रेमी झूठा नहीं था, वो तो बस मासूम था. अब चांद, सामने मुंडेर पर खड़ी महबूबा से पास नज़र आए तो इसमें भला नादान आशिक़ का क्या क़सूर?   

जैसा हाल पहले प्रेमी का था, वैसा ही आज मीम्सबाज़ों का भी है. बेचारों को पूरी दुनिया की इमारतें घर बैठें दिखाई पड़ रही हैं. 

दरअसल, कोरोना वायरस के कारण सरकार ने 21 दिन का लॉकडाउन कर दिया. सारे रंगनाथ घर में बंद हो गए. इंडस्ट्री वगैरह भी बंद हो गई है तो, प्रदूषण घट गया. हवा इत्ती साफ़ हो गई कि लोग फेफ़ड़े फुला-फुला कर जमा कर रहे हैं. काहे कि ज़िंदगीभर के काम आएगी. 

पॉल्यूशन इस हद तक गिर गया है कि पंजाब के जालंधर में छत पर बैठकर लोग धौलाधर की पहाड़ियां देखे डाल रहे. ऐसे में हमारे खलिहारे मीम्सबाज़ों के काटी खुजली. बस फिर क्या! बुर्ज ख़लीफ़ा लो या एफ़िल टावर सब नोएडा की बालकनी से ही दिखाई पड़ने लगा. जी हां, सच्ची-मुच्ची. 

यकीन न आए तो खुद हई देख लो. 

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