कौन थे विद्यासागर, जिनकी मूर्ति बंगाल में बीजेपी-टीएमसी के झगड़े में तोड़ दी गयी?

Kundan Kumar

मंगलवार को को भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में बड़ी झड़प हुई, भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह कोलकाता में रोड शो कर रहे थे, इस दौरान दोनों पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच जम कर बवाल हुआ.  

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हिंसा इस कदर बढ़ गई कि भीड़ में से कुछ लोग गुस्से में विद्यासागर कॉलज में लगी ईश्वर चंद विद्यासागर की मूर्ती को तोड़ दी. इस घटना के लिए दोनों पार्टी एक-दूसरे को ज़िम्मेदार बता रही है.  

बंगाल में शायद ही कभी उम्मीद की जा सकती थी कि कोई विद्यासागर की मूर्ती तोड़ सकता है लेकिन ये हुआ. बंगाल में उनका कद क्या था इस बात का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि साल 2004 में BBC द्वारा कराए गए पोल में विद्यासागर को Greatest Bengali Of All Time में उन्हें 9वां स्थान मिला था.  

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इश्वर चंद्र विद्यासागर का जन्म ब्रिटिश काल में 26 सितंबर, 1820 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. एक रूढ़िवादी परिवार में परवरिश होने के बावजूद उनके विचार बेहद क्रांतिकारी थे. उन्होंने बंगाल और हिन्दू समाज में कई सामाजिक परिवर्तन किए.  

वो एक महान समाज सुधारक, लेखक और भाषाविद थे. समाज में महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किए. बहुविवाह, बाल विवाह का विरोध, विधवाओं की शादी और महिलाओं के शिक्षा के लिए किए गए उनके प्रयास आज भी सराहे जाते हैं. उनके प्रयास की वजह से ही अंग्रज़ सरकार ने 1856 में विधवा विवाह क़ानून पास कर सकी. उन्होंने लड़कियों के लिए कई स्कूल खोले.  

इश्वरचंद विद्यासागर को आधुनिक बंगाली भाषा का जनक भी माना जाता है. उन्होंने बंगाली वर्णमाला में Typography के हिसाब से बदलाव किेए. साथ ही साथ, संस्कृत और बंगाली भाषा के व्याकरण में उनका गहरा शोध रहा है. इन दोनों भाषाओं के ऊपर उन्होंने कई किताबें लिखी हैं.  

ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि विद्यासागर का असली नाम विद्यासागर न हो कर इश्वरचंद्र बंदोपाध्याय था. उनके संस्कृत के ज्ञान से प्रभावित होकर गांव वाले उन्हें विद्यासागर पुकारने लगे, आगे चलकर संस्कृत कॉलज(जहां से उन्होंने पढ़ाई भी की थी) ने उन्हें विद्यासागर की उपाधी दी.  

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