गुजरात के पाटन से बीजेपी के 83 वर्षीय MP लीलाधर वाघेला को एक गाय ने टक्कर मारी और वे घायल हो गए. वाघेला अपने घर से टहलने निकले थे और गाय के इस हमले से उन्हें हॉस्पिटल ले जाना पड़ा. उनकी पसलियां टूट गयीं.
इस ख़बर को कई जगह दिखाया गया.
जितना दुर्भाग्यपूर्ण ये हादसा था, उससे ज़्यादा दुर्भाग्यपूर्ण थे लोगों के बयान.
पार्टी से वैचारिक मतभेद रखना, उसके किसी ग़लत अजेंडे का विरोध करने का अर्थ ये नहीं है कि आप इंसानियत भूल जाएं. आप ये भूल जाएं कि एक 83 साल के वृद्ध को चोट लगी है और वो ICU में हैं.
और अगर आपने ऐसा किया है, तो आप उन्हीं अमानवीय लोगों की श्रेणी में आते हैं, जिन्होंने गौरी लंकेश की हत्या को सही माना था. जिनके हिसाब से केरल में जो हुआ वो अच्छा हुआ, क्योंकि वहां वहां लोगों गौमांस खाते हैं.
भले ही आप स्वतंत्रता की आज़ादी की बात करते हों, लेकिन आप इसका भाव नहीं समझ पाएं हैं. इसलिए आप भी उन्हीं ग़लत लोगों में से हैं, जो किसी से इसलिए नफ़रत करती है, क्योंकि वो उनके विचार से मेल नहीं रखता.
ये सही है कि बीजेपी, गौहत्या और गाय को लेकर राजनीति कर रही है. वो देशभक्ति की अपनी अलग परिभाषा देकर भी राजनीति कर रही है, लेकिन उसके एक नेता के इस दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना का मज़ाक उड़ा कर आप ख़ुद को असंवेदनशील साबित कर रहे हैं.
कुछ दिनों पहले दिगंबर जैन मुनि, तरुण सागर की मृत्यु हो गई. तरुण सागर ने अलग-अलग विषयों पर कई विवादित बयान दिए थे. उनकी मृत्यु के बाद उन्हें जैन धर्म के नियमों के अनुसार, समाधि रूप में ही विलीन किया गया. समाधि मुद्रा में ‘शव’ के टिके रहने के लिए उसे रस्सी से बांध कर ले जाना पड़ता है. लोगों को इससे भी आपत्ति हुई और उनका कहना था, ‘मरने के बाद तो इस तरह दुश्मनों को भी नहीं बांधा जाता’ या फिर ‘युद्ध के बाद हारे हुए राजा को ऐसे बांधकर लाया जाता था’.
अल्प ज्ञान के नतीजा है ऐसी टिप्पणियां. किसी भी शव को बांधकर ही अर्थी पर लेटाया जाता है. ये छोटी सी बात को भूलकर लोगों ने तरुण सागर की अंतिम यात्रा पर भी तंज कसे.
इतिहास में हमने पढ़ा है और भारतीय सभ्यता की निशानी है कि भारतीय राजा, दुश्मनों को भी उनकी मृत्यु के बाद ससम्मान अंतिम विदाई देते थे. पूर्वजों द्वारा सिखाई गई इस बात को आज हम नज़रअंदाज़ क्यों कर रहे हैं? क्या यही मानवता है? चाहे वो किसी भी धर्म से हो या किसी भी विचारधारा को मानता हो, लेकिन किसी की मृत्यु पर ‘अच्छा हुआ मर गया’ जैसी भावना रखना या किसी के एक्सीडेंट पर ये कहना कि सही हुआ, एक समाज में रूप में हमारी हार को दर्शाता है.