मम्मी जब हमारी कटहल बनातीं, तो हम कद्दू ऐसा मुंह बना लेते हैं. काहे कि हमको चाहिए मटन-चिकन. हालांकि, मम्मी भी मानती नहीं. कहती हैं अरे खाकर तो देखो एकदम मटन लगेगा. मटन लगेगा? हद है! मटन, मटन होता है, कटहल पता नहीं होता ही काहे है. लेकिन जो बात हमारी मम्मी हमको न समझा पाईं वो बात कोरोना ने समझा दी.
लेकिन जब हमारे भाव गिरे तो ससुरा कटहल के भाव चढ़ गए. बाज़ार में 120 रुपये किलो बिक रहा. मतलब देखो तो. जो कटहल 50 रुपये किलो बिकता था, और तब भी हम हूर की परी टाइप ‘शक्ल देखी है अपनी आइने में’ वाला रिएक्शन देकर निकल लेते थे. आज उसी कटहल के भाव आसमान छू रहे.
ये सब हो रहा है कोरोना वायरस की वजह से. कोरोना मटन-चिकन की जिंदगी में विलन की तरह आया है. वही बॉलिवुड वाला विलन जो हीरो की बहन को काली पहाड़ी के पीछे ले जाता था. और पूरे गांव में चर्चा फ़ैल जाती थी कि अब फूलवती का हुईये?
चिकन के दाम 80 रुपये किलो रह गए हैं. पहले यही चिकन हर महफ़िल की शान होता था, लेकिन आज मार्केट में कोई नहीं पूछ रहा.
पूर्णिमा श्रीवास्तव का परिवार अधिक़तर नॉनवेजिटेरियन फ़ूड खाना पसंद करता है. उन्होंने बताया कि, ‘मटन बिरयानी से खाने से अच्छा है कि कटहल बिरयानी खा लें. स्वाद भी ठीक ही होता है. बस कटहल के साथ समस्या ये है कि सब्ज़ी मंडी में आसानी से मिलता नहीं.’
कोरोना वायरस की वज़ह से चिकन कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है. आलम ये है कि Poultry Farm Association ने गोरख़पुर में चिकन मेले का आयोजन किया था ताकि लोगों की ग़लतफ़हमी दूर कर सकें कि चिकन इस घातक वायरस का वाहक है.
Poultry Farm Association के प्रमुख विनीत सिंह ने बताया, ‘हमने 30 रुपये में प्लेटभर के चिकन के व्यंजन दिये थे. हमने एक हज़ार किलोग्राम चिकन बनाया और पूरा स्टॉक मेले में ख़त्म हो गया.’
हालांकि, मेले के आयोजन के बावजूद चिकन,मटन और फ़िश को लेकर लोगों में फ़ैले वायरस के डर को दूर नहीं किया जा सका.