रमज़ान के दौरान इफ़्तार के वक़्त दिल्ली की जामा मस्जिद से कोई भी व्यक्ति नहीं जाता भूखा

Sumit Gaur

चांद रात के साथी ही इबादत के पाक महीने रमज़ान की शुरुआत हो चुकी है. रोज़ेदार गुनाहों से दूर रह कर अल्लाह की इबादत और पांच वक़्त की नमाज़ में अपना समय देने लगे हैं. इन सब के बीच कुछ ऐसे भी लोग हैं, जिनके पास इफ़्तार करने के लिए पैसे नहीं है. ऐसे लोगों की मदद करने के लिए 28 वर्षीय मोहम्मद उज़ैर आगे आये हुए हैं, जो दिल्ली की जामा मस्जिद में हर शाम लोगों के लिए इफ़्तार का इंतेज़ाम करते हैं.

इफ़्तार में मिलने वाली इस प्लेट में दो खजूर, एक केला, पकौड़े और एक गिलास शिकंजी होती है. इस इफ़्तार के बारे में उज़ैर कहते हैं कि ‘हर शाम यहां बहुत से लोग अपने परिवार के साथ इफ़्तार करने के लिए आते हैं, जबकि यहां एक बहुत बड़ा तबका ऐसा भी रहता है, जो इफ़्तार का ख़र्च नहीं उठा सकता. ऐसे लोगों की मदद के लिए हम लोग यहां एक बड़ा दस्तरखान लगाते हैं, जिस पर हर वर्ग के लोग बिना किसी भेद-भाव के इफ़्तार कर सकते हैं.’

200 लोगों से शुरू हुए इस इफ़्तार में रोज़ाना लोगों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. पिछले हफ़्ते जुम्मे के दिन यहां करीब 1000 लोगों ने एक साथ इफ़्तार किया. उज़ैर दिल्ली के आजादपुर से फलों को इकट्ठा खरीदते हैं, जबकि घर में खुद अपने हाथों से लोगों के लिए स्नैक्स बनाते हैं.

मुहम्मद पैगम्बर और हदीस में विश्वास रखने वाले उज़ैर का मानना है कि अपनी क्षमता के अनुसार जितना हो सके लोगों के लिए इफ़्तार का इंतज़ाम करना चाहिए.

ऐसा ही एक इफ़्तार का इंतज़ाम 26 वर्षीय नुरुद्दीन करते हैं, जिनका कहना है कि जामा मस्जिद में इस तरह के इफ़्तार की शुरुआत उनके दादा हाज़ी हबीबुद्दीन ने 80 साल पहले की थी. नुरुद्दीन कहते हैं पहले ये इफ़्तार जामा मस्जिद के बगल वाली ‘माई के मज़ार’ वाले आंगन में हुआ करता था. कुछ सालों बाद इस चलन को जामा मस्जिद के प्रांगन में शुरू किया गया. नुरुद्दीन भी अपने दादा द्वारा शुरू किये गये इफ़्तार की परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं और हर महीने 200 लोगों के लिए इफ़्तार का इंतज़ाम करते हैं. 

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