जेएनयू मामले पर कुछ कहने, सुनने, फ़ॉरवर्ड करने से पहले वहां के छात्रों की आपबीती पढ़ लीजिये

Sanchita Pathak

जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में कल देर शाम ‘बाहर से आये कुछ नकाबपोश लोगों’ ने मार-पीट, तोड़-फोड़ की. डंडे, पत्थर, रॉड लिये इन लोगों ने न सिर्फ़ छात्रों को बल्कि शिक्षिकों को भी मारा.


जेएनयू में कल देर शाम जो भी हुआ उस सिलसिले में हमने बात की कुछ छात्रों से, उसे जस का तस रखने की कोशिश कर रहे हैं.  

1. ईशा   

कई महीनों से बढ़ाई गई फ़ीस को लेकर प्रदर्शन चल रहा था. इस बीच सीएए और एनआरसी वाला मामला आ गया और कहीं न कहीं इससे फ़ीस हाइक वाली बात और प्रदर्शन धुंधला पड़ गया पर छात्र तब भी लड़ रहे थे. प्रदर्शन को रोकने के मक़सद से विश्वविद्यालय प्रशासन ने परिक्षाओं की तारीख़ें निकाल दीं. उनका Desperation देखिए, WhatsApp पर परीक्षा लेने को भी तैयार हो गई. तब भी छात्र नहीं माने. इसके बाद इन्होंने अगले सेमेस्टर के लिए रजिस्ट्रेशन करवाना शुरू कर दिया. छात्रों ने इसका भी विरोध किया. जो छात्र फ़ीस भरना चाह रहे थे उन्हें विरोध कर रहे छात्र समझा रहे थे. 4 जनवरी की बात है. SIS काउंसलर, रित्विक राज वहां पहुंचा और बच्चों से मार-पीट की. रजिस्ट्रेशन का विरोध कर रहे छात्रों से हुई मार-पीट के विरोध में जेएनयू टीचर्स असोशिएशन (जेएनयू टीए) और जेएनयूएसयू ने पीस मार्च निकाला था. यहां शिक्षक, छात्र सभी मौजूद थे. इतने में 50-60 लोगों की बाहर से भीड़ आई और वहां मौजूद लोगों को बुरी तरह पीटा. शिक्षकों पर पत्थर फेंके. छात्र भागकर पास के हॉस्टल साबरमती पहुंचे और ये गुंडे वहां भी घुस आये और छात्रों को मारा. न सिक्योरिटी थी न कुछ. बग़ैर आईडी के घुसे कैसे? मैं साबरमती में ही रहती हूं जब ये घटना हुई तब बाहर गई थी चाय पीने. किसी तरह वहां से भागकर मैंने एक प्रोफ़ेसर के घर में पनाह ली. जो भी लोग आये थे वे छात्रों को आईडेंटिफ़ाई करके मार रहे थे. उन्हें पता था कि कौन सा छात्र कहां रहता है. मुस्लिम, दलितों को कॉर्नर करके मार रहे थे. 

ईशा ने हमें कुछ तस्वीरें भी भेजी- 

2. अल्का 

जेएनयूटीए के पीस मार्च पर बाहर के कुछ गुंडों ने हमला किया. ये घटना 5:30 बजे के आस-पास की है. ये लोग साबरमती हॉस्टल में घुसे, बॉयज़ विंग, गर्ल्स विंग दोनों जगह. जिन कमरों में एबीवीपी समर्थक रह रहे थे उन्होंने उन कमरों को हाथ तक नहीं लगाया. ढूंढ-ढूंढकर सिर्फ़ कुछ ख़ास छात्रों को मारा. ये लोग कैसे भी करके भागे. इन गुंडों को छात्रों के कमरों का पता किसने दिया? कैसे पता चला कि कौन सा छात्र कहां रहता है? हॉस्टल के अंदर की ये पूरी घटना लगभग 7:30 बजे तक चली. गार्ड्स तो पता नहीं कहां भाग गये थे. मुझे ख़ुद चोटें आई हैं. ऐंबुलेंस को भी आने नहीं दिया जा रहा था. 

जब हमने अल्का से पूछा कि क्या वो हॉस्टल में ही रहेंगी. उनका जवाब कुछ ये था- 

हॉस्टल ही तो घर है हमारा, इसको छोड़कर हम कहां जायेंगे? 

3. मनीष 

मैं 8 साल से जेएनयू में हूं. मैंने इन 8 सालों में इतना बुरा कभी कुछ नहीं देखा. ये जो भी आये थे भद्दी-भद्दी गालियां दे रहे थे और बस मारे जा रहे थे. मेरे कमरे के शीशे तोड़ दिये. मैंने और मेरे पड़ोसी ने कैसे भी करके अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया. ये लोग बाहर से कमरे का दरवाज़ा तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. मगर वो तोड़ नहीं पाये. अगर वो तोड़ लेते तो मैं बुरी तरह ज़ख़्मी होता. अभी सिर्फ़ कांच वगैरह लगे हैं. हॉस्टल के सभी छात्र Psychological Trauma में हैं. बाक़ायदा टाइम लगाकर प्लैनिंग किया गया था ये हमला. वरना कश्मीरियों और मुस्लिमों को क्यों मार रहे थे? मेरा पड़ोसी न तो किसी राजनैतिक गतिविधि में था और न ही वो किसी पार्टी में था, उसके कमरे में तोड़-फोड़ करने की क्या वजह थी? 

4. सूरज 

जेएनयू के ज़्यादातर छात्र रजिस्ट्रेशन के ख़िलाफ़ थे. रजिस्ट्रेशन रोकने के लिए 4 जनवरी को इन्होंने Wifi के मेन सोर्स के पास धरना दिया. 200-300 छात्र बैठे हुए थे और तक़रीबन 10-15 लोग आये और मारपीट करने लगे पर हमने हाथ नहीं उठाया. हाथ उठाने से प्रोटेस्ट किसी और तरफ़ ही मुड़ जाता. क्योंकि यहां धरना चल रहा था तो पुलिस पहले से मौजूद थी. 

सूरज घटना के दौरान विश्वविद्यालय के अंदर मौजूद नहीं थे. उन्हें जब बवाल का पता चला और वो लौटे और यूनिवर्सिटी के बाहर का नज़ारा देखा और हमसे वहीं बयां किया. 

देर शाम आरएसएस, बजरंग दल के लोगों को विश्वविद्यालय के अंदर जाने दिया जा रहा था पर वहां के छात्रों को ही अंदर नहीं दिया जा रहा था. पुलिस ने बैरिकेडिंग कर रखी थी. विश्वविद्यालय के आस-पास के स्ट्रीट लाइट्स भी बंद रखे गये ताकी अंदर घुसे गुंडे बाहर निकल पायें. 

सूरज इसके बाद यहां से निकलकर जेएनयू के पास के क्षेत्र मुनीरका गये. सूरज ने बताया, 

एबीवीपी के लोग वहीं नहीं रुके. वे मुनीरका पहुंचे और वहां डंडे, रॉड लेकर गलियों में घूम रहे थे. वे जेएनयू के बच्चों को ढूंढ रहे थे. 

JNU प्रेस रिलीज़ पर सूरज ने ये कहा, 

ये वीसी जो कह रहे हैं कि रेजिस्ट्रेशन करने वालों के साथ बदसलुकी की जा रही थी, उन्हें रोका जा रहा था, आप बताइए अगर वाईफ़ाई नहीं चल रहा है और मुझे रेजिस्ट्रेशन करना है तो क्या मैं अपने फ़ोन के 4G या किसी कैफ़े से नहीं कर लूंगा? ये क्या बचकानी बात हुई कि Wifi नहीं चल रहा तो बच्चे रेजिस्ट्रेशन नहीं कर पायेंगे.   

सूरज ने कल की घटना पर एक और अहम बात कही, 

एबीवीपी के लोग कितने भी उपद्रवी हों पर अगर जेएनयू के हों तो इतनी घटिया हरकत कभी नहीं करेंगे. ये बाहर के ही लोग थे. इस पूरे हमले में प्रोक्टर, वीसी सब मिले हुए हैं. बिना प्रोक्टर की मदद के बच्चों के कमरों का पता कैसे चला? इतने बड़े विश्वविद्यालय में एक सुरक्षाकर्मी नहीं, ऐसा कैसे? ये जो भी थे बड़े कायर थे, शिक्षकों पर पत्थर फेंका उन्होंने. 

नोट: गोपनीयता बरक़रार रखने के लिए छात्रों के नाम बदल दिये गये हैं.  

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