कर्नाटक में दसवीं की एक क़िताब पीवी सिंधु को रजत पदक नहीं, बल्कि कांस्य पदक विजेता बता रही है

Shubham

किताबें किसी स्कूल की ऐसी दीवार होती हैं, जिसके सहारे टीचर और स्टूडेंट दोनों चलते हैं. किताबों में लिखी हर बात कुछ न कुछ सिख़ाती है, जिसे पत्थर की लकीर मान कर जीवन में उतार लिया जाता है. स्कूल की किताबों में तथ्यात्मक, व्याकरण संबंधी आदि ग़लतियां न हों, इसके लिए सरकार बकायदा समिति का गठन करती है, जो किताबें छपने से पहले किताबी ग़लतियों को दूर कर सके. इसके बावजूद भी किताबों में भयंकर ग़लतियां मिलती ही हैं.

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ऐसी ही एक बड़ी ग़लती कर्नाटक की एक किताब में मिली, जिसे जानने के बाद आप भी सोचने पर मज़बूर हो जाएंगे कि देश के बच्चों को मिलने वाली शिक्षा की गुणवत्ता कैसी है.

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कर्नाटक में दसवीं कक्षा के इंग्लिश मीडियम की Physical Education की किताब में, पीवी सिंधु के बारे में लिखा है कि सिंधु ने 2016 में रियो ओलम्पिक में कांस्य पदक जीता था. जबकि, पीवी सिंधु पहली भारतीय महिला और चौथी भारतीय हैं, जिन्होंने ओलंपिक में रजत पदक जीता है.

स्टूडेंट ने पकड़ी इतनी बड़ी ग़लती

एक शिक्षक, जिन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बात की और कहा कि 

‘एक छात्र ने किताब की इस ग़लती को देखा. ये हमारे लिए बहुत शर्म की बात है कि छात्रों को ऐसी ग़लतियां किताबों में मिलती हैं.’

टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने इस विषय पर ‘बेलागवी’ और ‘चिकोड़ी’ जिले के Deputy Director Of Public Instruction से बात करने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहे.

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर को भी नहीं दिखी ये ग़लती

पाठ्यपुस्तक को तैयार करने वाली समिति की अध्यक्षता, धरवाड़ के College of Physical Education के रिटायर्ड प्रिंसीपल आनंद नादगिर और उनकी टीम कर रही थी, जिनका बैकग्राउंड Physical Education का ही रहा है. दिलचस्प बात ये है कि संशोधन समिति के प्रमुख अध्यक्ष बारागुरु रामचंद्रप्पा और अध्यक्ष गजानन प्रभु को भी ये ग़लती नहीं दिखी. ये दोनों लोग कुवेम्पु विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं. इस संशोधन समिति में शारीरिक शिक्षा के बैकग्राउंड वाले पांच सदस्य और भी हैं.

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स्कूल की किताबों में इस तरह की ग़लती पहली बार नहीं हुई है. कहीं किसी किताब में तथ्यात्मक ग़लतियां होती हैं, तो कहीं गलत स्पेलिंग की भरमार होती है. सोचने वाली बात ये है कि किताबों की ग़लतियों को सुधारने के लिए बकायदा एक समिति का गठन किया जाता है, फिर भी ग़लतियां रह जाती हैं, तो ऐसी समिति का फ़ायदा ही क्या? क्यों जनता के पैसों से ऐसी समिति के सदस्यों को तनख़्वाह दी जाती है?

Article Source: Indian Express & India Times

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