2 पत्रकारों के लेखों के कारण कर्नाटक एसेंब्ली ने सुनाई सज़ा, निर्भय विचारों के लिए ख़तरे की घंटी

Sanchita Pathak

25 जून, 1975 ये तारीख़ शायद ही कोई भूले. देश का इकलौता आपातकाल इसी दिन घोषित किया गया था. इसके बाद का मंज़र इतना दर्दनाक था, जिसे लफ़्ज़ों में बयां करना मुश्किल है. उस वक़्त के हालात तो उस वक़्त में जीने वाले ही समझ सकते हैं. लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर भी पाबंदी लगा दी गई थी और सरकार के खिलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को दबा दिया गया.

पत्रकारिता ने देश को आज़ाद कराने में अहम भूमिका निभाई थी. सारे क्रांतिकारी कलम की शक्ति से भी लोगों को जागरूक करते थे. लेकिन 1975 में सत्ताधारियों ने पत्रकारिता को अपने हाथों की कठपुतली बना दिया. पत्रकारों को अपना फ़र्ज़ निभाने से रोका जाता था, उनके साथ बद से बद्दतर सुलूक किया जाता था.

Scoop Whoop

इतिहास को एक बार फिर दोहराया जा रहा है. कर्नाटक एसेंबली के स्पीकर ने आपातकाल की स्थिति की याद को ताज़ा कर दिया है. 21 जून को स्पीकर के.बी.कोलीवाद ने दो पत्रकारों के लिए 1-1 साल की जेल और 10-10 हज़ार रुपये जुर्माना भरने का फ़रमान जारी कर दिया. Hi Bangalore के संपादक रवि बेलागेरे और Yelahanka Voice के संपादक अनिल राज पर बीजेपी एमएलए के खिलाफ़ ग़लत छापने का आरोप लगाकर बाकायदा सज़ा सुनाई गई.

कॉन्ग्रेस MLA किम्मने रत्नाकर ने सिर्फ़ अनिल राज को दोषी पाया पर न्याय के देवता बनते हुए, स्पीकर महोदय ने रवि बेलागेरे के पुराने लेखों का हवाला देते हुए उन्हें भी दोषी ठहरा दिया.

The NorthEast Today

पहली बार कॉन्ग्रेस और बीजेपी के लोगों को एक साथ देखकर समझ नहीं आ रहा, कि कैसी प्रतिक्रिया देनी चाहिए. दोनों एमएलए ने पत्रकारों पर अपमानजनक लेख छापने का आरोप लगाया. इस पूरे मामले में कितनी सच्चाई है ये तो अदालत ही तय करेगी.

शायद ये पहला मौका है जब किसी एसेंबली में सर्वसम्मति से पत्रकारों के खिलाफ़ Resolution पास किया गया है. पत्रकारों के अधिकारों का हनन करना तो राजनेताओं का धर्म है. ये चाहते हैं कि इनसे कोई सवाल न करे और ये आराम से बचकर चलें. जनाब, सवाल करना तो हर पत्रकार का अधिकार है और जवाब देना आपका कर्तव्य या मजबूरी.

कुछ दिनों पहले रिपब्लिक के पत्रकार के साथ भी आरजेडी के नेता लालु प्रसाद यादव ने अभद्र व्यवहार किया था. इस घटना समेत कई घटनाएं हैं, जब पत्रकारों को राजनेता, आम जनता के गुस्से का शिकार होना पड़ा है. यहां एसेंबली में तो सिर्फ़ कारावास और आर्थिक जुर्माना लगाया गया है, पर मीडिया Observer, The Hoot पूरी सच्चाई बयां कर देती है. पिछले साल ही 54 मीडियकर्मीयों पर हमले किए गए, 25 पत्रकारों को धमकाया गया और 7 की बेरहमी से हत्या कर दी गई. World Press Freedom Index 2017 में 180 देशों में भारत 136वें पायदान पर है. World Press Freedom Day पर देश के प्रधानमंत्री ने भी ट्वीट कर प्रेस की आज़ादी पर कुछ शब्द ज़ाया किए थे. पर माननीय प्रधानमंत्री जी ट्वीट करने से सिर्फ़ असल समस्या का निदान नहीं हो सकता.

इस सच से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि देश में विचारों की आज़ादी पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

Source: Huffington Post

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