कुशीनगर के रवि Banana Waste से फ़ाइबर निकालकर बना रहे हैं Sanitary pads और हैंडीक्राफ़्ट प्रोडक्ट्स

Kratika Nigam

Banana Waste Handicraft Product: तंगहाली या तो निखार देती है या बिखेर देती है निर्णय आपको लेना है आपको कौन सा रास्ता चुनना है. ऐसा ही एक निर्णय उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहने वाले रवि प्रसाद ने भी लिया. इस तंगहाली भरी ज़िंदगी में उन्होंने निखरने की सोची और वो निखरे भी. रवि ने वेस्ट से बेस्ट बनाया और कई महिलाओं को रोज़गार भी दिया. रवि Banana Waste से हैंडीक्राफ़्ट प्रोडक्ट बनाते हैं. रवि अपने इस अनोखे बिज़नेस से अब तक 450 से ज़्यादा महिलाओं को रोज़गार दे चुके हैं. रवि के बनाए हुए प्रोडक्ट ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों जगह बिकते हैं.

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आइए, The Better India की रिपोर्ट के अनुसार रवि के Banana Waste के बिज़नेस की शुरुआत (Banana Waste Handicraft Product) और कमाई दोनों के बारे में जानते हैं.

36 साल के रवि ने बचपन से ही घर की आर्थिक स्थिति कुछ अच्छी नहीं देखी थी. इनके पिता मज़दूरी करते थे और रवि उनका हाथ बंटाने के साथ-साथ पढ़ाई भी करते थे. मगर एक हादसे में पिता की अचानक मृत्यु हो जाने के चलते रवि ने पढ़ाई छोड़ दी और काम ढूंढने लगे. कई साल छोटी-मोटी नौकरी करके घर चलाते रहे. फिर साल 2016 में दोस्तों के साथ काम की तलाश में रवि दिल्ली आए और यहां प्रगति मैदान में लगने वाले ट्रेड फ़ेयर में गए, जहां वो Banana Waste से बने प्रोडक्ट के स्टॉल से प्रभावित हुए.

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रवि बताते हैं,

केले की बेकार चीज़ों से बने हैंडीक्राफ़्ट प्रोडक्ट से मैं बहुत प्रभावित हुआ क्योंकि हमारे यहां केले की अच्छी पैदावार है तो इस बिज़नेस को करने के बारे में सोचा जा सकता है. स्टॉल में सभी कारीगर साउथ के थे तो मैंने उनमें से एक कारीगर से दोस्ती कर ली और उनसे क्राफ़्ट को सिखाने का आग्रह किया. फिर एक महीने के लिए क्राफ़्ट सीखने कोयंबटूर चले गये.जब रवि ने बनाना फाइबर वेस्ट से हैंडीक्राफ़्ट प्रोडक्ट बनाना सीख लिया तो अपने गांव वापस आ गए.

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क्राफ़्ट तो सीख ली, लेकिन रवि के प्रोसेसिंग मशीन ख़रीदने के पैसे नहीं थे. फिर भी उन्होंने कोशिश जारी रखी और अपने एक जानने वाले के ज़रिए रवि ज़िला उद्योग केंद्र के जनरल मैनेजर से मिले और वो इनके काम के बारे में सुनकर प्रभावित हुए और रवि के लिए लोन का प्रपोज़ल तैयार करने में मदद का आश्वासन दिया.

साल 2018 में रवि को बैंक से 5 लाख रुपये का लोन मिला, जिससे उन्होंने प्रोसेसिंग मशीन ख़रीदी और कुछ महिलाओं को रोज़गार दिया. इन्हीं महिलाओं के साथ मिलकर रवि Banana Waste से प्रोडक्ट बनाकर मार्केट में बेचने लगे. रवि के प्रोडक्ट की यूपी सरकार ने भी तारीफ़ की और समर्थन दिया. राज्य सरकार की वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट स्कीम के लिए रवि को चुना गया.

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इस चयन के बाद, रवि के काम से और भी महिलाएं जुड़ीं फिर रवि ने दिल्ली और लखनऊ जैसे शहरों की ओर रुख़ किया और वहां होने वाले मेलों में स्टॉल लगाना शुरू किया. इससे रवि के और भी कस्टमर बने और उन्हें ऑफ़लाइन और ऑनलाइन दोनों ऑर्डर मिलने लगे. इन्हें अब देशभर से जमकर ऑर्डर मिलते हैं. रवि इस वेस्ट बिज़नेस से हर साल 8 से 9 लाख रुपये का बिज़नेस करते हैं.      

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  रवि ने Banana Fiber Waste की यूनिट कुशीनगर में लगाई है, जिससे क़रीब 450 महिलाएं जुड़ी हैं, जिनका काम प्रोडक्ट बनाना है. प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत सबसे पहले खेतों से केले के स्टेम काटकर लाने से की जाती है. फिर मशीन के ज़रिये स्टेम को दो भागों में काटा जाता है इसके बाद, महिलाएं इसे शीट्स के रूप में काटती हैं. कई लेवल की प्रोसेसिंग के बाद शॉर्ट फ़ाइबर और लॉन्ग फ़ाइबर तैयार होता है. फिर इसे धूप में सुखाकर प्रोडक्ट बनाये जाते हैं. अभी इनकी यूनिट में हैंडीक्राफ़्ट, रेशा, सैनिटरी नैपकिन, ग्रो बैग सहित कई अन्य प्रोडक्ट तैयार किये जाते हैं. इनके प्रोडक्ट बड़ी-बड़ी टेक्सटाइल कंपनियों में जाते हैं.

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भारत में बड़े लेवल पर केले का उत्पादन तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और बिहार में होता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, हर साल 14 मिलियन टन केले का उत्पादन होता है, जिसमें से 1.5 मिलियन टन ड्राई बनाना फ़ाइबर होता है. अगर करियर के हिसाब से देखें तो ये बिज़नेस अच्छा है क्योंकि इसमें ज़्यादा लागत है. किसान के लिए ये बेकार होता है तो वो फ़्री में दे देते हैं. इसमें मुश्किल बात है मार्केट बनाना क्योंकि अभी इस तरह के प्रोडक्ट की क़ीमत अधिक है अगर बड़े लेवल पर प्रोसेसिंग का काम होगा तो क़ीमत में गिरावट आ सकती है.

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आपको बता दें, बनाना वेस्ट से फ़ाइबर निकालने और उससे प्रोडक्ट तैयार करने की ट्रेनिंग तिरुचिरापल्ली में National Research Centre for Banana (NRCB)से ले सकते हैं. इसके अलावा, गुजरात के नवसारी कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग से इसकी ट्रेनिंग ली जा सकती है. कई राज्यों के कृषि विज्ञान केंद्र में भी इसकी ट्रेनिंग दी जाती है.

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