एक हादसे से रुक जाना ज़िंदगी नहीं है, बल्कि उसके साथ आगे बढ़ना ज़िंदगी है.
ऐसा ही प्रांजल पाटिल ने किया है, जिन्होंने अपनी ज़िंदगी के अंधेरेपन को अपनी रौशनी बनाया और आज आईएएस ऑफ़िसर बनकर सबके सामने आई हैं. महाराष्ट्र के उल्हास नगर में रहने वाली प्रांजल केरल के तिरुवनंतपुरम में पदभार संभालने वाली पहली नेत्रहीन महिला ऑफ़िसर हैं.
इससे पहले प्रांजल ने 2016 में UPSC की परीक्षा में 773वीं रैंक हासिल की थी. इसके बाद उनको भारतीय रेलवे लेखा सेवा में नौकरी दी गई. मगर रिपोर्ट्स की मानें, तो ट्रेनिंग के समय ही उनकी नेत्रहीनता को कमज़ोरी बताकर रेलवे ने उन्हें ये नौकरी देने से इंकार कर दिया.
प्रांजल इस इंकार से न तो डरीं और न ही रुकीं. वो एकबार फिर उठीं और उन्होंने फिर से 2017 में UPSC की परीक्षा दी और 124वीं रैंक हासिल की. इसके बाद केरल की एरनाकुलम के उप कलेक्टर के रूप में अपने प्रशासनिक करियर की शुरुआत की. प्रांजल ने अपनी सारी सफ़लताओं का श्रेय अपने माता-पिता और अपने पति को दिया.
आपको बता दें, 6 साल की उम्र में प्रांजल के एक क्लासमेट ने उनकी आंख में पेंसिल घोप दी थी जिसके बाद उनकी एक आंख की रौशनी चली गई थी. इस घटना के बाद डॉक्टर ने उनके माता-पिता को बताया था कि आगे चलकर वो अपनी दूसरी आंख की भी रौशनी खो सकती हैं और ऐसा ही हुआ. मगर प्रांजल के माता-पिता ने प्रांजल का इस दुख की घड़ी में पूरा साथ दिया और उनकी नेत्रहीनता को कभी भी उनके सपनों के आड़े नहीं आने दिया.
इसके लिए उन्होंने मुंबई के दादर में स्थित नेत्रहीनों के स्कूल श्रीमति कमला मेहता स्कूल में प्रांजल का एडमिशन कराया. जहां पर ब्रेल लिपि में पढ़ाई कराई जाती थी. प्रांजल ने यहां से 10वीं की पढ़ाई करने के बाद चांदीबाई कॉलेज से 12वीं की परीक्षा दी. इसमें प्रांजल के 85 फ़ीसदी अंक आए. इसके बाद बीए की पढ़ाई के लिए उन्होंने मुंबई के सेंट ज़ेवियर कॉलेज में एडमिशन लिया.
प्रांजल ने पद संभालने के बाद News18 से बातचीत के दौरान कहा,
हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए. हमारे प्रयासों से हमें वो सफ़लता ज़रूर मिलेगी जो हम चाहते हैं. मैं इस पद को संभाल कर बहुत ख़ुश और गौरवान्वित हूं. एक बार जब मुझे सारे उप-प्रभागों के बारे में ठीक से पताचल जाएगा, तो तो मुझे सबके लिए किस तरह से और क्या-क्या काम करना है वो मैं तय करूंगी.
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