देश के छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर जिले से आये दिन नक्सली हमले और भिड़ंत की खबरें आती रहती हैं. लेकिन आज बस्तर जिले से एक अच्छी खबर आ रही है. नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में पहली बार किसी महिला ने सीआरपीएफ बटालियन-80 में असिसटेंट कमांडेंट के पद पर कार्यभार संभाला है. उषा किरण नाम की महिला को इस पद पर नियुक्त किया गया है. किसी महिला अधिकारी के पदभार संभालने से वहां के सुरक्षा बलों को मनोबल तो मिला ही है साथी ही उनका आत्मविश्वास भी बढ़ा है.
आपको बता दें कि असिसटेंट कमांडेंट उषा किरण सीआरपीएफ में तीसरी पीढ़ी की अधिकारी हैं. उषा के दादा दीपचंद और पिता विजय सिंह भी CRPF में अपनी सेवाएं दे चुके हैं. इतना ही नहीं, उनके भाई दर्शन सिंह भी CRPF में सेवारत हैं. इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि रक्षाबलों के लिए सेवा देना उनके खून की एक-एक बूंद में शामिल है. उषा किरण मूल रुप से गुंड़गांव की रहने वाली हैं. वे ट्रिपल जंप की राष्ट्रीय विजेता भी रही हैं और स्वर्ण पदक भी जीता है. उनकी नियुक्ति से आदिवासियों और महिलाओं में आशा कि किरण जगी है.
उषा किरण बताती हैं कि उनकी सेवाएं 332 महिला बटालियन में थीं, जहां पर उन्हें भविष्य में सेवाएं देने के लिए तीन के लिए ऑप्शन्स दिए गए थे, जिसमें से उन्होंने नक्सल प्रभावित बस्तर में आना स्वीकार किया. इसके पीछे की मुख्य वजह ये थी कि बस्तर के स्थानीय निवासी गरीब भोले-भाले हैं. और ये इलाका नक्सली हिंसा हमलों के कारण विकास नहीं कर पाया है. साथ ही स्थानीय लोगों की अज्ञानता व पुलिस और ग्रामीणों के बीच अपनत्व का अभाव भी है. इसलिए इस समस्या के निदान के लिए पहली ज़रूरत है कि विकास की गति बढ़े और हमारे जवान अपनी सामाजिक गतिविधियों के जरिए हर व्यक्ति तक अपनी पहुंच बनाएं, ताकि ग्रामीण हमें खुद से अलग न समझें.
बस्तर में अपना पद संभालने के बाद किये अपने पहले अभियान से मिले एक्सपीरियंस के बारे में बताते हुए उषा ने बताया, ‘आंतरिक दुरूह अंचल में बसे ग्राम भडरीमऊ (दरभा क्षेत्र) मैं अपने दल के साथ गई थी, जहां पहुंचने के लिए मुझे 20 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ा. उस गांव में जब मैं पहुंचीं, तब मेरा मन यह देखकर खुश हुआ कि गांव की आदिवासी महिलाएं मुझको देखकर अपने-अपने घरों से बाहर निकल आईं और उन महिलाओं के चेहरे पर प्रसन्नता की झलक साफ दिखाई पड़ रही थी.‘
उषा का कहना है कि आदिवासी और यहां की महिलाएं पुरुष जवानों से डरे हुए रहते हैं, लेकिन उनके साथ ये लोग ज्यादा सहज महसूस करते हैं. उनकी नियुक्ति से आदिवासियों और महिलाओं में आशा कि किरण जगी है. उन्हें पुलिस यूनिफार्म में देखकर ग्रामीण महिलाएं उत्साहित होकर कह रही थीं, वे भी अपने बच्चों को पढ़ाएंगी और सुरक्षाबलों में नौकरी के लिए प्रेरित करेंगी.
इसी बटालियन के सहायक कमांडेंट नंदलाल ने महिला अधिकारी का स्वागत करते हुए कहा कि अब तक बलों पर ग्रामीणों, ग्रामीण महिलाओं द्वारा विभिन्न आरोप लगाए जाते रहे हैं, मगर अब एक महिला अधिकारी की मौजूदगी कार्य को सुगम बना देगी और वे अपने कर्तव्य का निर्वहन सरलतापूर्वक करने में कामयाब होंगे.
दरभा के थानेदार विवेक उईके का मानना है कि महिला अधिकारी के आने और उनके अभियान संबंधी सोच से सुरक्षा बलों के जवानों का मनोबल बढ़ा है.
उषा ने साफ़ तौर पर कहा कि उन्हें महज एक महिला न समझें और वे उन सबके साथ हर कठिन परिस्थिति में कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करेंगी. एक आदिवासी महिला का कहना था कि अब हम महिलाएं खुद अपनी अस्मिता की सुरक्षा के प्रति निश्चिन्त हैं, क्योंकि हमारे हितों और भावनाओं की रक्षा के लिए एक महिला अधिकारी यहां मौजूद है.