हाल ही में आई India Meteorological Department’s (IMD) कि एक रिपोर्ट के मुताबिक, इन दिनों भारत का आधे से ज़्यादा हिस्सा सूखे जैसी स्थिति का सामना कर रहा है. मौसम विभाग का कहना है कि देश में अधिकांश लोग पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं, झीलें सूख रही हैं और भू जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है. लेकिन फिर भी जल संरक्षण को लेकर हमारे पास कोई भी ठोस नीति नहीं बन पाई है.
वहीं दूसरी तरफ़ पूर्वोत्तर राज्य मेघालय से एक उम्मीद की किरण नज़र आई है. वहां की सरकार ने पानी की खपत, जल संरक्षण और रक्षा के मुद्दों से निपटने के लिए जल नीति के मसौदे को मंजूरी दे दी है. ऐसा करने वाला वो देश का पहला राज्य बन गया है.
उप-मुख्यमंत्री प्रीस्टोन त्येनसोंग(Prestone Tynsong) ने बताया कि मुख्यमंत्री कोनराड के. संगमा की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को मसौदा नीति को मंजूरी देने से पहले नीति के कई आयामों पर लंबी चर्चा की है.
हिंदुस्तान टाइम्स से बात करते हुए त्येनसोंग ने कहा- ‘मेघालय देश का पहला राज्य है जिसने राज्य जल नीति बनाई है. पानी के उपयोग और आजीविका से संबंधित सभी मुद्दों और जल निकायों का संरक्षण कैसे किया जाए, इसका नीति में उल्लेख किया गया है. साथ ही ग्रामीण स्तर पर जल स्वच्छता ग्राम परिषद का गठन करके इस नीति के कार्यान्वयन में समुदाय की भागीदारी की बात भी की गई है.’
उप-मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य के जल संसाधन विभाग ने जल निकायों के संरक्षण और रक्षा विशेषज्ञों से सलाह-मशविरा करके ये नीति तैयार की है. उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने पानी से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिए जल शक्ति मिशन का शुभारंभ किया है.
इस नीति का उद्देश्य सभी जल स्रोतों और उनके जल ग्रहण क्षेत्रों का संरक्षण करना है. ताकी जल स्रोतों की मात्रा और गुणवत्ता में गिरावट को रोका जा सके. किसी भी तरह की आपदा और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उन्होंने 3R – Reduce, Recycle और Reuse का फ़ॉर्मूला तैयार किया है.
साथ ही नई बनने वाली इमारतों में वर्षा जल संरक्षण के लिए जगह बनाना अनिवार्य कर दिया गया है. वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए राज्य चेक डैम बनाने की नीति पर भी काम कर रहा है. क्योंकि पहाड़ी राज्य होने के चलते यहां का अधिकतर पानी बहकर बांग्लादेश चला जाता है.
जलवायु परिवर्तन के चलते राज्य के कुछ हिस्सों में बाढ़ आ सकती है, जबकि राज्य के अन्य हिस्सों में पानी की कमी की समस्या उत्पन्न हो सकती है. नई नीति में इससे बचने के लिए भी रिसर्च कर समाधान निकालने की भी बात कही गई है.
मेघालय से हमारे देश के दूसरे राज्यों को भी सबक लेना चाहिए.