इंदौर के एक अल्पसंख्यक स्कूल के 47 छात्राओं के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि बोर्ड परीक्षा के दौरान छात्रों को उनके धर्म की वजह से कक्षाओं के बाहर बिठाया गया. जिला प्रशासन इन आरोपों को ख़ारिज करते हुए कहा कि ऐसा इसलिए किया गया क्योंकि वो COVID-19 कन्टेनमेंट ज़ोन के निवासी थे.
इस्लामिया करीमिया सोसाइटी द्वारा संचालित स्कूल की लड़कियों ने 9 जून को इंदौर के बंगाली हाई स्कूल में कक्षा 12 की ओपन-बुक परीक्षा दी थी, जहां उन्हें अलग टेबल और बेंचों पर बिठाया गया. इस स्कूल की छात्राएं मुख्यतः आर्थिक रूप से कमज़ोर परिवारों से आती हैं.
एक अभिभावक द्वारा लिया गया वीडियो जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, उसमें स्कूल के गेट के बाहर अभिभावक उस सेंटर के अधिकारियों के खिलाफ़ प्रदर्शन करते हुए देखे जा सकते हैं. एक अभिवावक ने चिल्लाते हुए कहा कि “आप उन्हें बाहर क्यों बैठा रहे हैं? उनके रोल नंबर के अनुसार उन्हें अंदर बैठाइये”.
इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए, सेंट्रल भोपाल के विधायक, आरिफ़ मसूद ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को लिखा,
अगर नफ़रत के आधार पर विभाजन उन जगहों पर किए जाते हैं, जहां सांप्रदायिक सद्भाव का पाठ पढ़ाना चाहिए, तो यह कहना मुश्किल है कि ये राज्य को कहां ले जाएगा.
द हिन्दू की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ इस मामले पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस के इंदौर के प्रवक्ता अमीनुल खान सूरी पूछते हैं कि ‘अगर स्कूल में कक्षाओं के अंदर बैठने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, तो इसे परीक्षा केंद्र क्यों बनाया गया था’. वो आगे कहते हैं, ‘इस केंद्र में दो अन्य स्कूलों के किसी भी छात्र को इस तरह अलग नहीं बैठाया गया. जब इंदौर में महामारी का विस्फोट हो रहा है, तो यह कैसे संभव है कि एक विद्यालय के मुस्लिम छात्रों को छोड़ कर कोई भी कन्टेनमेंट क्षेत्रों से नहीं आया. छात्रों के मन में धारणाएं होती हैं और वे हमेशा सोचेंगे कि क्योंकि वे एक ख़ास धर्म से संबंधित हैं, उन्हें अलग बैठाया गया’.
ग़ौरतलब है कि ऑनलाइन फॉर्म के साथ एक व्हाट्सएप संदेश इंदौर के स्कूलों को भेजा गया था जिसके अनुसार ‘मध्य प्रदेश बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन, भोपाल से अफिलीऐटड स्कूल, जिनके छात्र कक्षा 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं, उन्हें अनिवार्य रूप से यह फॉर्म भरना होगा. इसमें ऐसे छात्रों के नाम, उनके रोल नंबर इत्यादि दर्ज किए जाने चाहिए जो जिला प्रशासन द्वारा घोषित कन्टेनमेंट क्षेत्रों में रहते हैं’.
हालांकि बोर्ड कहना है कि उसकी ओर से ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं किया गया था. राज्य परीक्षा नियंत्रक बलवंत वर्मा कहते हैं, ‘हम किसी को इस तरह अलग नहीं कर सकते हैं और न ही उनके साथ भेदभाव कर सकते हैं. हमने ऐसा कोई विवादास्पद निर्णय जारी नहीं किया है’.
श्री वर्मा ने कहा कि परीक्षाओं के संचालन के निर्देश बार-बार जिला अधिकारियों को दिए गए थे. उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘COVID जैसे लक्षण दिखने वाले किसी भी छात्र को एक अलग कक्ष में बिठाया जाएगा और उसे परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी. जो कोरोना पॉजिटिव हैं उनके लिए बाद में फिर से परीक्षा आयोजित की जाएगी, इससे अधिक कुछ नहीं ‘.
विद्यालयों से कन्टेनमेंट क्षेत्रों की सूची मंगवाने की पुष्टि करते हुए इंदौर जिला शिक्षा अधिकारी, राजेंद्र मकवानी कहते हैं,
यह हमारी अपनी पहल है. ओपन बुक परीक्षा में इंदौर के 131 केंद्रों पर क़रीब 22,000 छात्र थे. Physical Distancing के कारण जहां पहले 500 छात्र बैठ सकते थे, अब वहां 100-150 से अधिक नहीं बैठ सकते हैं. इसलिए हमें छात्रों को बैठाने के लिए बरामदे और सांस्कृतिक कार्यक्रम में उपयोग होने वाले स्टेज का उपयोग करना पड़ा. हमने उन्हें टेबल और सीटें उपलब्ध करायीं.
वो कहते हैं कि केंद्र केवल छात्रों के रोल नंबर जानते हैं, ‘हम उन्हें रोल नंबरों के आधार पर सीट देते हैं, इसके अलावा हमें उनके नाम सहित उनकी पहचान के बारे में कुछ पता नहीं होता है, इसलिए धर्म के आधार पर अलग बैठाने की व्यवस्था का कोई सवाल ही नहीं है’.