मुंबई के 44 वर्षीय मैराथन रनर की कहानी जान कर आप भी कहेंगे ‘जहां चाह, वहां राह’

Sumit Gaur

सोहनलाल द्विवेदी की एक कमशहुर कविता है कि ‘लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती.’ इस कविता को लिखे हुए 2 दशक से भी ऊपर का वक़्त हो चुका है, पर इसकी प्रासंगिकता आज भी जस की तस बनी हुई है. अब जैसे मुंबई के रहने 44 वर्षीय समीर सिंह की ही कहानी ही देख लीजिये, जो सिर्फ़ इसलिए दौड़ते हैं कि खुद की फिटनेस को बनाये रखे.

समीर हर सुबह 4 बजे खार से मरीन बीच आते हैं, जहां वो लगभग 8:30 बजे तक दौड़ते हैं. इसके बाद आधे घंटे का ब्रेक ले कर वो फिर 11:30 बजे तक दौड़ने के बाद खार की तरफ़ लौटते हैं. खार में थोड़ी देर आराम करने के बाद 1 बजे जुहू बीच की तरफ़ रवाना हो जाते हैं.

इसके पीछे उनका लक्ष्य 100 दिनों में 100 किलोमीटर तक दौड़ना था. अपने इस लक्ष्य की शुरुआत उन्होंने 29 April को की थी और 49 दिनों के अंदर ही वो इसके काफ़ी करीब पहुंच गए हैं. उम्मीद है कि वो बहुत जल्दी ही इसे पा भी लेंगे.

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