दोनों किडनियां फ़ेल होने के बावजूद नहीं छोड़ी जीने की उम्मीद, 14 सालों से खुद कर रहे हैं अपना इलाज

Sumit Gaur

किसी ने क्या खूब कहा है ‘हौसलों में उड़ान हो, तो बंदा क्या कुछ नहीं कर सकता’, ऐसे ही हौसलों भरी एक कहानी है मुम्बई के रहने वाले 59 वर्षीय प्रकाश मोरे की, जिनकी दोनों किडनियां पिछले 20 सालों से ख़राब हैं और प्रकाश के पास इतने पैसे नहीं कि वो डायलिसिस का खर्च उठा सकें.

पर प्रकाश ने हार नहीं मानी और महंगे डायलिसिस के स्थान पर कॉन्टीनिवस एंबुलेटरी पेरिटोनियल डायलिसिस (CAPD) का विकल्प चुन कर अपने जीने की उम्मीदों को ज़िंदा किया. इस टेक्नॉलजी के बारे में प्रकाश ने KEM हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ नेफ्रोलॉजी के हेड निवृति हासे से पूछा कि ‘पैसों के अभाव में क्या कोई व्यक्ति खुद अपनी डायलिसिस कर सकता है?’ जिसके बाद डॉक्टर ने इस टेक्नॉलजी के बारे में बताते हुए कहा कि “इसमें एक ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे व्यक्ति के एब्डोमिनल कैविटी में डाला जाता है. इस प्रक्रिया में बहुत ज़्यादा सावधानी रखी जाती है, क्योंकि इसमें संक्रमण होने का ख़तरा रहता है.”

24 घंटों में 3 बार होने वाली प्रक्रिया में 15 से 20 मिनट का समय लगता है, जिसके लिए प्रकाश ने अपने घर में ही एक ऑपरेशन थिएटर बनाया और खुद ही अपनी डायलिसिस करने लगे.

प्रकाश इस पद्धति को अपनाकर न सिर्फ़ अपना इलाज कर रहे हैं, बल्कि दूसरे मरीजों के लिए भी एक मिसाल कायम कर रहे हैं, जो पैसों के अभाव में इस तरह के महंगे इलाज से वंचित रह जाते हैं.

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