कचरा बीनने वाले इस शख़्स ने 33 हज़ार रुपये से भरे पर्स को वापस कर बताया कि ईमानदारी अभी भी ज़िंदा है

Maahi

आज की मतलबी दुनिया में मानवता और ईमानदारी जैसे शब्दों की कदर थोड़ा कम हो गयी है. ढूंढना भी चाहोगे, तो शायद हज़ारों में कोई एक मिल जाये, और वो भी बहुत बड़ी बात होगी. दिल्ली हो या मुम्बई किसी से अगर प्यार से रास्ता भी पूछ लो, तो मुंह फेर कर चला जाता है. सड़क पर किसी व्यक्ति का एक्सीडेंट होने पर लोग भीड़ ज़रूर लगाएंगे, लेकिन उसे अस्पताल ले जाने की हिम्मत कोई नहीं दिखायेगा. सबको बस अपने काम से मतलब होता है और हर कोई अपना फ़ायदा देखता है.

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लेकिन इंसानियत आज भी ज़िंदा है. मुम्बई के 30 वर्षीय दीपचंद गुप्ता इसका जीता जागता उदाहरण हैं. दीपचंद कूड़ा उठाने का काम करते हैं. दरअसल, हुआ यूं कि एक दिन दीपचंद हमेशा की तरह थाणे रेलवे स्टेशन के पास कूड़ा उठाने गए थे. इसी दौरान उनको ट्रैक के पास एक पर्स पड़ा हुआ मिला. जैसे ही दीपचंद ने पर्स खोला, तो उसने देखा कि उसमें डेबिट और क्रेडिट कार्ड के अलावा ढेर सारे रुपये भी हैं. इतने सारे पैसे देखकर किसी की भी नियत बदल सकती थी. लेकिन दीपचंद ने उनको अपने पास रखने के बजाय ईमानदारी दिखाई और पर्स को लेकर सीधे ठाणे स्टेशन मास्टर के कार्यालय पहुंचे गए. वहां उन्होंने पैसों से भरे पर्स को उसके मालिक तक पहूंचाने की बात बोली और घर लौट गए.

एक गरीब आदमी को इतने पैसे पड़े हुए मिले फिर भी उसने ईमानदारी दिखाते हुए उसे लौटा दिया. ऐसे नज़ारे आज की दुनिया में कम ही देखने को मिलते हैं.

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मिड डे से बात करते हुए थाणे स्टेशन मास्टर बी.के. महिंदर ने कहा ‘दीपचंद एक पर्स लेकर मेरे पास आये और मुझसे कहा कि उन्हें ये पर्स प्लेटफॉर्म नंबर 5 के पास ट्रैक पर मिला है. इसके अंदर ढेर सारे पैसे हैं, कृपया आप इसे इसके मालिक तक पहुंचा दीजिये. स्टेशनमास्टर ने जब पर्स खोलकर देखा तो उसमें पूरे 33 हज़ार रुपये रखे हुए थे.

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स्टेशन मास्टर ने पर्स के मालिक का पता लगाया तो पाया कि पर्स थाणे निवासी अक्षरा मोक्षी का है. 

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अक्षरा ने मिड डे से बात करते हुए कहा ‘मुझे लगा कि जिस वक़्त मैं ऑटोरिक्शा से उतरी थी, उसी वक़्त पर्स कहीं गिर गया. इसके बाद मैंने अपने एक दोस्त को स्टेशन के पास पर्स ढूंढने को कहा, मैंने भी कई जगह ढूंढने की कोशिश की, पर्स कहीं मिला नहीं. इसके बाद मैंने उम्मीद खो दी थी. बैग तब तक एक कबाड़ बीनने वाले को मिल चुका था. जिसने उसे स्टेशन मास्टर को दे दिया था. लेकिन जब मुझे रेलवे स्टेशन से कॉल आया कि पर्स मिल गया है, तो मैं रो पड़ी थे. क्योंकि वो पैसा मैंने बहुत मेहनत से कमाया था.

बैग मिलने के बाद अक्षरा ने दीपचंद गुप्ता को 2500 रुपये इनाम के तौर पर दिए. बदले में दीपचंद गुप्ता ने भी अक्षरा को अपने सामान की ज़िम्मेदारी की सलाह भी दी.

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किसी के साथ अच्छा करो तो आज नहीं तो कल, आपके साथ कुछ अच्छा ज़रूर होता है. मुंबई के दीपचंद गुप्ता इसकी मिसाल हैं.

Source: darpanmagazine

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