कभी-कभी भूली-बिसरी बातें भी देश का मान-सम्मान बढ़ा देती हैं. 10 साल पहले खोए जिस चंद्रयान-1 को हम भूला बैठे थे, उसने आज 21वीं सदी के उभरते भारत की एक और तस्वीर पेश की है. दरअसल, अमेरिकन स्पेस एजेंसी नासा ने हाल ही में इस बात को आधिकारिक तौर पर कहा कि चांद की सतह पर पानी मिलने की पुष्टी उसी खोए हुए चंद्रयान-1 ने की थी.
चंद्रयान-1 को भारतीय स्पेस एजेंसी Indian Space Research Organization (इसरो) ने साल 2008 में लॉन्च किया था, लेकिन चंद्रमा की कक्षा में स्थापित होने के कुछ महीने बाद इसका संपर्क इसरो से टूट गया था. तब तक इसके द्वारा भेजे गए डाटा से इसरो ने पूरी दुनिया को चांद पर पानी होने की संभावना जताई थी. इससे संपर्क टूटने के बाद इसरो ने इस मिशन को बंद कर दिया था.
इस यान को साल 2017 में नासा ने खोज लिया था. इसी यान में नासा का एक उपकरण Moon Mineralogy Mapper (M3) लगा था. इसमें मौजूद डाटा पर रिसर्च करने के बाद नासा के वैज्ञानिकों ने ये दावा किया है कि चांद के ध्रुवीय इलाकों में बर्फ़ मौजूद है. ये बर्फ़ चंद्रमा की सतह पर गड्ढ़ों में पाई गई है.
नासा ने बताया कि, चंद्रयान-1 ने चांद के जिस हिस्से पर पानी होने की पुष्टी की थी, वहां पर तापमान -156 डिग्री सेल्सियस अधिक नहीं होता. यहां चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सूर्य की किरणें नहीं पहुंच पाती, जिसकी वजह से वहां मौजूद पानी बर्फ़ में तब्दील हो गया होगा.
नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि भविष्य में इस बर्फ़ को चांद पर संसाधन के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. हो सकता है आने वाले दिनों में इसकी मदद से इंसानों को वहां बसाया जा सके.
ये साबित करता है कि इसरो अंतरिक्ष की महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, जो हमारे लिए गर्व की बात है.