हाल ही में संपन्न हुए एशियन गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों ने इतिहास रचते हुए 69 मेडल हासिल किए. सिस्टम ने भी इन खिलाड़ियों पर सरकारी नौकरी और रुपयों की बरसात की. जब सारा देश इन खिलाड़ियों की उपलब्धियों पर जश्न मना रहा था, उस वक़्त भोपाल की सड़कों पर एक खिलाड़ी भीख मांगने को मजबूर था.
इस खिलाड़ी का नाम है मनमोहन सिंह लोधी. ये एक नेशनल लेवल के पैरा एथलीट हैं. नरसिंह पुर ज़िले के कंदरपुर गांव में रहने वाले मनमोहन 2009 में एक दुर्घटना में अपने हाथ खो बैठे थे. इन्होंने पिछले साल अहमदाबाद में हुए स्पेशल ओलंपिक में 100 मीटर दौड़ में रजत पदक जीता था.
उसके बाद मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें नौकरी देने का वादा किया था. मगर कई महीनों तक सीएम ऑफ़िस के चक्कर काटने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली. अब उन्हें अपना घर और सपना पूरा करने के लिए मजबूरन भीख मांगनी पड़ रही है.
उन्होंने ANI को दिए इंटरव्यू में कहा- ‘मैं 4 बार सीएम शिवराज सिंह से मिल चुका हूं, सिवाय आश्वासन के उनसे मुझे कुछ नहीं मिला. मेरी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं हैं, मुझे खेलने और घर चलाने के लिए पैसों की ज़रूरत है. अगर सीएम मेरी मदद नहीं करेंगे, तो मुझे इसी तरह भीख मांग कर अपना गुज़ारा करना होगा.’
सिस्टम द्वारा किसी खिलाड़ी को भुलाए जाने की ये पहली घटना नहीं है. इससे पहले विश्व पैरा चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली कंचनमाला पांडे को भी बर्लिन की गलियों में भीख मांगनी पड़ी थी. तब भी सिस्टम की नाकामी की वजह से उनके लिए जारी किए गए पैसे खिलाड़ियों तक नहीं पहुंचे थे. कंचनमाला नेत्रहीन हैं और उन्होंने स्विमिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया था.
एक तरफ़ तो हम खिलाड़ियों से मेडल की उम्मीद कर रहे हैं. दूसरी तरफ़ न उन्हें खेल के लिए प्रोत्साहित करते हैं, न मेडल जीतने के बाद उनका ख़्याल करते हैं.