नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा है कि, भारत में कड़े सुधारों को लागू करना काफ़ी मुश्किल है. इसका कारण ये है कि यहां लोकतंत्र कुछ ज़्यादा ही है. देश को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये और बड़े सुधारों की ज़रूरत है.
अमिताभ कांत ने मंगलवार को ‘स्वराज्य पत्रिका’ के कार्यक्रम के दौरान वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये संबोधित करते हुए कहा कि, भारत के संदर्भ में कड़े सुधारों को लागू करना बेहद मुश्किल है. भारत में खनन, कोयला, श्रम, कृषि आदि क्षेत्रों के सुधारों को आगे बढ़ाने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति की ज़रूरत है और अभी भी कई सुधार हैं, जिन्हें आगे बढ़ाया जाना चाहिए.
कृषि क्षेत्र से जुड़े सुधारों पर कांत ने कहा,
हमें ये समझना बेहद ज़रूरी है कि ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ (MSP) की व्यवस्था जारी रहेगी, मंडियों में भी पूर्व की भांति काम होता रहेगा. किसानों के पास अपनी पसंद के हिसाब से अपनी फ़सल बेचने का विकल्प होना चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें ही लाभ होगा.
अमिताभ कांत ने आगे कहा कि, हम कड़े सुधारों के बगैर चीन के साथ आसानी से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते. पहली बार केंद्र सरकार ने खनन, कोयला, श्रम, कृषि समेत विभिन्न क्षेत्रों में कड़े सुधारों को आगे बढ़ाया है. अगले दौर का सुधार अब राज्यों की तरफ़ से किये जाने की ज़रूरत है. मौजूदा सरकार ने कड़े सुधारों को लागू करने के लिये राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखायी है.
अगर 10 से 12 राज्य भी उच्च दर से वृद्धि करेंगे, तो इसका कोई कारण नहीं कि भारत उच्च दर से विकास नहीं करेगा. हमने केंद्र शासित प्रदेशों से वितरण कंपनियों के निजीकरण के लिये कहा है. वितरण कंपनियों को अधिक प्रतिस्पर्धी होना चाहिए और सस्ती बिजली उपलब्ध करानी चाहिए.
मोदी सरकार के ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को लेकर अमिताभ कांत ने कहा कि ये ख़ुद में सिमटने की बात नहीं है, बल्कि भारतीय कंपनियों की क्षमता, संभावनों को बाहर लाने के लिये है.