15 अगस्त 2014 को पीएम मोदी ने अपने भाषण में कहा था कि एक साल के भीतर सभी स्कूल्स में लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट बन जायेंगे. ज़ोरों से काम हुआ और हज़ारों की तादाद में टॉयलेट बने भी. अब नियंत्रक व महालेखा परीक्षक(CAG) की रिपोर्ट आई है. वो ये कहती है कि टॉयलेट तो बने लेकिन इनमें से 72 फ़ीसदी में पानी की सुविधा ही नहीं है. 55 प्रतिशत में हाथ धोने की सुविधा नहीं है और कई टॉयलेट तो कागज़ों पर ही बना दिए गए हैं.
CAG ने ये रिपोर्ट बुधवार को संसद में पेश की. ये रिपोर्ट 15 राज्यों के सरकारी स्कूल्स में बने 2695 टॉयलेट्स का ऑडिट कर बनाई गई है. इन्हें केंद्रीय सरकारी कंपनियों (Central Public Sector Enterprises) द्वारा बनाया गया था.
ये सभी टॉयलेट साल 2014 में मानव संसाधन मंत्रालय के स्वच्छ स्कूल अभियान के तहत बनाए गए थे. NTPC, PGCIL, NHPC, PFC, REC, ONGC और CIL जैसी 7 CPSEs ने मिलकर 1.3 लाख टॉयलेट्स बनाए थे. इन्हें बनाने में क़रीब 2,162.6 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
इनमें से 2,612 टॉयलेट्स में से 200 मिले ही नहीं और 86 आंशिक रूप से बने हुए मिले. ऐसे 83 टॉयलेट मिले, जिनका निर्माण पहले ही किसी अन्य योजना में हो चुका था. 1,967 स्कूलों में से 99 में काम करते हुए टॉयलेट नहीं थे और 463 में सिर्फ़ एक टॉयलेट था.
27 प्रतिशत स्कूलों में अब भी लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग टॉयलेट नहीं हैं. इनमें से 691 टॉयलेट पानी की कमी, टूट-फूट की वजह से इस्तेमाल नहीं किए जा रहे हैं. NTPC के बनाए हुए 17 फ़ीसदी टॉयलेट मिले ही नहीं या आंशिक रूप से बने मिले.
कोल इंडिया लिमिटेड ने जो 1,119 टॉयलेट बनाए हैं, उनमें से 14 फीसदी या तो नहीं बने या आंशिक रूप से बने हैं. इनमें से 30 फ़ीसदी में हाथ धोने के लिए साबुन या फिर हैंडवाश की सुविधा भी नहीं थी. CAG ने ये सर्वे 2019 में किया था और इसकी रिपोर्ट संबंधित मंत्रालयों को 2 जनवरी, 2020 को भेज दी गई थी.
कोरोना काल में डॉक्टरों का कहना है कि हाथ धोना ज़रूरी है. कुछ-कुछ राज्यों में स्कूलों को धीरे-धीरे खोला भी जा रहा है. मगर अब सवाल ये उठता है कि जिन स्कूल्स में टॉयलेट साफ़ न हों, जिनमें पानी न हो और जहां हाथ तक धोने की सुविधा न हो, उन स्कूल में कैसे बच्चों को इस महामारी से बचाया जा सकेगा? क्या ऐसे स्कूल्स में बच्चों के अभिभावक उन्हें पढ़ने के लिए भेजेंगे?