कुछ इस तरह भारत में हुआ था शून्य का आगाज़, हमारी सोच से भी सदियों पुराना निकला ‘शून्य’

Akanksha Tiwari

भारत शून्य का जन्मदाता है, ये बात लगभग हर किसी को पता है, पर शून्य को लेकर एक नई जानकारी सामने आ रही है. दरअसल, कार्बन डेटिंग की हालिया स्टडी के मुताबिक, शून्य की मौजूदगी का सबसे पहला रिकॉर्ड हमारे अब तक के ज्ञान से भी पुराना है. कार्बन डेटिंग की नई खोज से शून्य के तीसरी या चौथी सदी के होने की पुष्टि होती है. मतलब शून्य का अस्तित्व 500 साल पुराना है. इसके साथ ही इसे शून्य के बारे में सबसे पुराना हस्तलिपि साक्ष्य माना जा रहा है. बखशाली पांडुलिपि में दर्ज इस रिकॉर्ड से ये साफ़ है कि प्राचीन समय से ही शून्य का ख़ूब इस्तेमाल होता आ रहा है.

ये पांडुलिपि पाकिस्तान के पेशावर में 1881 में मिली थी, जो 1902 से ब्रिटेन की ऑक्सफ़ोर्ड में बोडलियन लाइब्रेरी में ऐसे ही सुरक्षित है. वहीं अब तक ग्वालियर के एक मंदिर की दीवार पर शून्य के ज़िक्र को सबसे पुराना अभिलेखीय प्रमाण माना जाता रहा है.

कार्बन डेटिंग के इस नए शोध के मुताबिक, शोधकर्ताओं के लिए ये बता पाना काफ़ी मुश्किल था कि ये पांडुलिपि किस समय की है, क्योंकि ये 70 भोजपत्रों से बनी हुई है और इसमें तीन अलग-अलग काल की सामग्रियों के प्रमाण मिले हैं.

628 ईसवीं में भारतीय ज्योतिर्विद और गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने ‘ब्रह्मस्फ़ुटसिद्धांत’ नामक किताब लिखी थी, जिसे शून्य के बारे में लिखी पहली किताब माना जाता है. वहीं शून्य के नए प्रमाण को लंदन के साइंस म्यूज़ियम में 4 अक्टूबर 2017 को ‘Illuminating India: 5000 Years of Science’ आयोजन में प्रर्दशित किया जाएगा.

Video Source : University of Oxford

ये नई खोज भारत के लिए काफ़ी महत्वपूर्ण है, क्योंकि जिस गोल आकृति का इस्तेमाल हम बतौर शून्य करते हैं, बिल्कुल वैसा ही बखशाली प्रतिलिपि में भी इस्तेमाल किया गया है, इससे इस बात की पुष्टि होती है कि शून्य का जन्मदाता भारत ही है.

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