इस साल यानी साल 2019 में देश के कई किसानों को कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्हीं किसानों में से एक हैं दैत्री नायक, जिनको अकेले दम पर गोनसीका पर्वत को काटकर अपने गांव तक 1 किमी लम्बी नहर पहुंचाने के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.
दैत्री नायक वो शख़्स हैं, जिन्होंने अपने गांव में पानी लाने के लिए पहाड़ जैसे पठारी इलाके में एक नहर बना दी थी. ओडिशा के ख़निज संम्पन केन्दुझर ज़िले के तलाबतारानी गांव के किसान नायक ने अपनी इस मेहनत से गांव के कई और किसानों की मुश्किल दूर कर दी थी. दैत्री को ये नहर बनाने में करीब 3 साल लगे थे. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नायक ने एक कुदाल और एक लोहदंड की मदद से 2010 और 2013 के बीच ये नहर खोद डाली थी जिसके परिणामस्वरूप उनके क्षेत्र में क़रीब 100 एकड़ भूमि की सिंचाई हुई.
Hindustantimes के अनुसार, मगर ये देश का दुर्भाग्य ही है कि 75 वर्षीय ये किसान अपना अवॉर्ड लौटाना चाहता है. अवॉर्ड लौटाने का कारण वो बताते हैं कि ये सम्मान उनके जीवन जीने के लिए एक रोड़ा साबित हुआ है. इस सम्मान ने उनको पशोपेश की ओर धकेल दिया.
अपनी इस स्थिति के बारे में नायक का कहना है,
पद्म श्री पुरस्कार मिलने से मेरी किसी भी तरह की मदद नहीं हुई है. ये अवॉर्ड मिलने से पहले मुझे दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम मिल भी जाता था. मगर अब लोग मुझे काम नहीं दे रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ये मेरी गरिमा से कम है. जीवित रहने के लिए मुझे और मेरे परिवार को चींटी के अंडे खाने पड़ रहे हैं.
-Daitari Nayak
इसके साथ ही उन्होंने बताया,
अपना घर चलाने के लिए अब मैं तेंदू के पत्ते और अम्बा साध (आम पापड़) बेच रहा हूं. इस पुरस्कार के अब मेरे लिए कोई मायने नहीं हैं. मैं अपना पुरस्कार वापस करना चाहता हूं ताकि मुझे कुछ काम मिल सके.’
-Daitari Nayak
नायक का कहना है कि 700 रुपये की वृद्धावस्था पेंशन के साथ अपने बड़े परिवार को चलाना उनके लिए मुश्किल है, जो उन्हें हर महीने मिलती है. इसके अलावा कुछ साल पहले उन्हें जो इंदिरा आवास योजना के तहत घर आवंटित किया गया था, वो भी अधूरा पड़ा हुआ है, जिस कारण वो अपने पुराने और जर्जर घर में रहने के लिए मजबूर हैं.
कितने दुर्भाग्य की बात है कि एक निराश किसान अब इस पद्मश्री के कारण अधर में लटका हुआ है.
वहीं नायक के बेटे अलेख जो एक मजदूर हैं, ने कहा कि सड़क निर्माण और नहर के कटाव को रोकने के लिए उनके पिता से किए गए वादों को भी नहीं रखा गया. उन्होंने बताया,
‘सम्बंधित अधिकारियों ने हमसे वादा किया था कि चट्टानी नहर को कंक्रीट का बनाया जाएगा. मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. इसके कारण मेरे पिता भी निराश हैं कि वो लोगों के लिए कुछ भी नहीं कर पाए, यहां तक कि पीने के लिए साफ़ पानी लाने में भी सक्षम नहीं हैं.’
इस पर टिपण्णी करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता, सत्य प्रकाश नायक ने कहा,
आदिवासी किसान की दुर्दशा ने ये दिखा दिया है कि किसानों के लिए ओडिशा सरकार का वादा कितना खोखला था. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि नवीन पटनायक ने किसानों के लिए कालिया योजना शुरू की लेकिन उनका प्रशासन सिंचाई के लिए नहर खोदने वाले किसान के लिए कुछ नहीं कर सकता. ये बहुत ही निराशाजनक और दयनीय है.
-सत्य प्रकाश नायक
वहीं केन्दुझर ज़िले के कलेक्टर, आशिस ठाकरे ने इस पूरे मामले पर कहा कि वो ख़ुद पूछताछ करेंगे कि दैत्री नायक किन कारणों की वजह से अपना सम्मान लौटाना चाहते हैं. हम उनकी शिकायत को संबोधित करेंगे और पुरस्कार न लौटाने के लिए उन्हें मनाने की कोशिश करेंगे.
पाठक गण कृपया ध्यान दें ये ख़बर देश के सबसे बड़े अखबारों में से एक Hindustan Times की वेबसाइट में पब्लिश हुई थी. इंडिया टुडे में कल पब्लिश हुई ख़बर के अनुसार,
दैत्री नायक ने कहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं है, न ही मैं अपना अवॉर्ड लौटाना चाहता हूं और न ही मेरा परिवार चींटियों के अंडे खाने को मजबूर है. हां ये सच है कि हमारी माली हालत अच्छी नहीं है और न ही सरकार की तरफ़ से हमको कोई मदद ही मिल रही है.’ इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया क्योंकि कई अखबारों में इस बारे में ग़लत ख़बरें छाप रही हैं.
ये नेता और अधिकारी अब भले ही कितनी ही लीपा-पोती क्यों न कर लें, लेकिन जब एक किसान दुखी है और उसके पास जीविकोपार्जन के लिए कोई साधन नहीं है, तब ये अवॉर्ड उसकी बुनियादी ज़रूरतों को कैसे पूरा करेगा. एक किसान के लिए उसके परिवार का पेट भर जाए यही बहुत बड़ा सम्मान होता है, जो इस देश के अधिकतर किसान परिवारों को नहीं मिल रहा है.