Paytm के संस्थापक विजय शेखर शर्मा (Vijay Shekhar Sharma) सफ़लता की अद्भुत मिसाल हैं. 10 हज़ार रुपये से शुरुआत करने वाले शर्मा आज अरबों की संपत्ति के मालिक हैं. 2017 में ही वो भारत के सबसे कम उम्र के अरबपति बने थे. वो इस मुक़ाम तक कैसे पहुंचे हैं, आज हम आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं.
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कमाई देख कर कोई शादी करने को नहीं हुआ तैयार
विजय शेखर शर्मा उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के रहने वाले हैं. उनके पिता अध्यापक और मां हाउस वाइफ़ रही हैं. 27 साल की उम्र में वो महज़ 10 हजार रुपये महीना कमा रहे थे. 2004 में वो अपनी एक छोटी सी कंपनी के ज़रिए मोबाइल कॉन्टेंट बेचा करते थे. उस सैलरी को देखकर उनकी शादी तक में मुश्किल हो रही थी. वो कहते हैं, ‘लड़की वालों को जब पता चलता था कि मैं दस हजार रुपये महीना कमाता हूं, तो वे दोबारा बात ही नहीं करते थे. मैं अपने परिवार का अयोग्य कुआंरा बन गया था.’
शर्मा एक इंजीनियर हैं. ऐसे में उनके पिता ने उन्हें कोई नौकरी करने की सलाह दी. उन्होंने बताया, ‘2004-05 मे मेरे पिता ने कहा कि मैं अपनी कंपनी बंद कर दूं और कोई 30 हजार रुपये महीना भी दे, तो नौकरी ले लूं.’ मगर शर्मा ने उनकी बात नहीं मानी. 2010 में शर्मा ने पेटीएम की स्थापना की, जिसका आईपीओ 2.5 अरब डॉलर पर खुला.
कैसी Paytm बनी 2.5 अरब डॉलर की कंपनी?
पेटीएम ने इनिशिअल पब्लिक ऑफ़रिंग (आईपीओ) के ज़रिए 2.5 अरब डॉलर जुटाए थे. फाइनेंस-टेक कंपनी पेटीएम अब भारत की सबसे मशहूर कंपनियों में से एक बन गई है और नए उद्योगपतियों के लिए एक प्रेरणा भी.
पेटीएम की शुरुआत एक दशक पहले ही हुई है. तब ये सिर्फ़ मोबाइल रिचार्ज कराने वाली कंपनी थी. लेकिन ऊबर ने भारत में इस कंपनी को अपना पेमेंट पार्टनर बनाया तो पेटीएम की किस्मत बदल गई. पर पेटीएम के लिए पासा पलटा 2016 में जब भारत ने अचानक एक दिन बड़े नोटों को बैन कर दिया और डिजिटल पेमेंट्स को बढ़ावा दिया.
नोटबंदी ने खोली किस्मत
नोटबंदी के बाद तो पेटीएम बड़े बड़े शोरूम से लेकर ठेले-रिक्शा तक पहुंच गया. सबके यहां पेटीएम के स्टिकर नज़र आने लगे. सॉफ्टबैंक और बर्कशर जैसी मल्टीनेशनल कंपनियों के समर्थन वाली पेटीएम अब अपनी शाखाएं दूसरे उद्योगों में भी फैला रही है. ये सोना बेच रही है. फ़िल्में बना रही है, विमानों की टिकट और बैंक डिपॉज़िट भी उपलब्ध करवा रही है.
वो कहते हैं कि बहुत समय तक उनके माता-पिता को पता ही नहीं था कि उनका बेटा करता क्या है. शर्मा बताते हैं, ‘एक बार मां ने मेरी संपत्ति के बारे में हिंदी के अखबार में पढ़ा तो मुझसे पूछा कि वाकई तेरे पास इतना पैसा है.’
जब विजय शेखर शर्मा को पहली बार हुआ डर का एहसास
पेटीएम ने जो डिजिटल पेमेंट का जो काम भारत में शुरू किया था, उसमें अब गूगल, अमेज़ॉन, वॉट्सऐप और वॉलमार्ट के फोनपे जैसे बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी भी आ चुके हैं. वजह ये है कि भारत में ये बाज़ार 2025 बढ़कर 952 खरब डॉलर से भी ज्यादा का हो जाने का अनुमान है.
अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भारत में आने से एक बार तो विजय शेखर शर्मा को डर लगा था. तब उन्होंने सॉफ्टबैंक के संस्थापक खरबपति उद्योगपति मासायोशी सन को फ़ोन किया. वो बताते हैं, ‘मैंने मासा को फ़ोन किया और कहा कि अब तो सब लोग यहां आ गए हैं, अब मेरे लिए क्या बचता है. आपको क्या लगता है?’
तब सन ने कहा, ‘ज़्यादा पैसा जुटाओ, और अपना सब कुछ लगा दो’. सन ने कहा कि बाकी कंपनियों के लिए ये प्राथमिक बिज़नेस नहीं है, पेटीएम को पेमेंट बिज़नेस को बनाने में पूरी ऊर्जा लगा देनी चाहिए.
शर्मा कहते हैं कि उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वैसे कुछ बाज़ार विश्लेषकों को संदेह है कि पेटीएम मुनाफ़ा कमा पाएगी, मगर शर्मा को अपनी कंपनी की सफ़लता पर कोई संदेह नहीं है. 2017 में पेटीएम ने कनाडा में एक पेमेंट ऐप शुरू किया और उसके एक साल बाद जापान में मोबाइल वॉलेट पेश कर दिया.
विजय शेखर शर्मा कहते हैं, ‘मेरा सपना है कि पेटीएम के झंडे को सैन फ्रांसिस्को, न्यू यॉर्क, लंदन, हांग कांग और टोक्यो तक लेकर जाऊं. और जब लोग इसे देखें तो कहें, ये एक भारतीय कंपनी है.’