फुलकारी मास्क ने भरे पंजाब की विधवा महिलाओं की ज़िंदगी में रंग, ऑस्ट्रेलिया तक बेचकर कर रही कमाई

Abhay Sinha

देश में कोरोना महामारी का क़हर जारी है. इस ख़तरनाक वायरस के चलते हज़ारों लोगों की अब तक मौत हो चुकी है. वहीं, इसे रोकने की लिए लगाए गए लॉकडाउन ने लाख़ों लोगों का रोज़गार छीन लिया. पंजाब, जहां किसान समुदाय में लगातार आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं, वहां घर चलाने से लेकर बच्चों की परवरिश और दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करने का बोझ भी महिलाओं के कंधे पर आ गया है.   

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ऐसे में पंजाब के मूनक की कई विधवाओं ने ख़ुद को आत्मनिर्भर बनाने का फ़ैसला कर लिया. ये महिलाएं एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए फुलकारी फ़ेस मास्क बना रही है. इससे न सिर्फ़ वो अपनी जीविका चला रही हैं, बल्कि स्थानीय कढ़ाई की परंपरा फुलकारी को पुनर्जीवित करने का भी काम कर रही हैं.   

इस स्थानीय परंपरा की मदद से इस गांव की महिलाएं एक मुनाफ़े वाला और टिकाऊ उद्यम शुरू करने में सक्षम रही हैं. महिलाएं मास्क बनाकर भारत समेत ऑस्ट्रेलिया जैसे दूर देशों में भी बेच रही हैं.   

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डिज़ायनर मास्क की बढ़ती मांग को देखते हुए फुलकारी मास्क बनाने का विचार सबसे पहले दिल्ली की एक सामाजिक कार्यकर्ता ग़ज़ाला ख़ान को आया. ग़ज़ाला ख़ान एक एनजीओ Building Bridges India चलाती हैं, जो पंजाब में ग्रमीण परिवारों के साथ काम करता आया है और अब ये एनजीओ मास्क के लिए कच्चा मैटीरियल ख़रीदने में भी मदद कर रहा है.   

ग़ज़ाला ने News18 को बताया कि, आज ये महिलाएं जहां हैं, वहां पहुंचने के लिए काफ़ी मशक्कत करनी पड़ती है. इन महिलाओं के पिता या पति आत्महत्या कर चुके हैं. शुरुआत में इन महिलाओं के पास ऐसी कोई जगह नहीं थी, जहां वो ढंग से काम कर सकें.’  

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हालांकि, महिलाओं के इस काम के बारे में पता चलने के बाद कई गुरुद्वारे मदद के लिए आगे आए. उन्होंने मुफ़्त में ही ज़मीन दी, जहां से ये महिलाएं अपना काम कर सकें. अब पंजाब में संगरूर जिले के दस गांवों में दस केंद्र हैं. हर केंद्र में 25 से 30 महिलाएं हैं, जहां बिना पूर्व जांच के किसी को भी अंदर आने की अनुमित नही है.  

डिज़ायनर मास्क के ट्रेंड के चलते पंजाब की महिलाओं को अपना जीवन वापस से पटरी पर लाने में मदद मिली है. नया रोज़गार होने से वो अपने घर-परिवार और ख़ुद की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ हज़ार रुपये कमा पा रही हैं. साथ ही इससे एक शानदार स्थानीय कढ़ाई की परंपरा को बढ़ावा भी मिल रहा है.   

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