‘जाते हुए भी तड़पाते हो आते हुए भी
ऐ मेरे कल तू क्यों इतना बेरहम है’
दिल्ली आज कुछ ऐसा ही महसूस कर रही है. ‘कल’ जिसने तबाही का मंज़र दिखाया. ‘कल’ जो किसी अनहोनी से सहमा हुआ है. सीएए समर्थन और विरोध के नाम पर जो दंगे भड़के उसने 38 बेगुनाह ज़िंदगियों को लील लिया.
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सरकारी-निजी संपत्ति को बरबाद कर दिया गया. जो दुकानें किसी परिवार की रोज़ी-रोटी का ज़रिया थीं, जला दी गईं. जो स्कूल आने वाले भविष्य का निर्माण कर रहे थे, ध्वस्त कर दिये गए. जो जिंदगियां किसी के घर का चिराग थीं, बुझा दी गईं.
दंगाईयों ने जो घाव शहर को दिया है, उसका दर्द ये तस्वीरें बयां कर रही हैं.