किताबें,पेन नहीं झारखंड के स्कूल में बच्चे छाता पकड़ने को हैं मजबूर, ऐसे कैसे बढ़ेगा इंडिया

Ishi Kanodiya

एक स्कूल की बुनियादी अवश्यकताओं में से एक बेहतरीन इंफ्रास्ट्रक्चर का होना बेहद ज़रूरी होता है. बदक़िस्मती से भारत में बहुत से सरकारी स्कूल जर्जर अवस्था में हैं. 

आए दिन हम अख़बारों और टीवी पर ऐसी एक ख़बर से रूबरू हो ही जाते हैं. ऐसी ही एक ख़बर झारखण्ड के मुरेठाकुरा गांव से आई है. 

गांव में हुई भारी बारिश की वज़ह से स्कूल की बिल्डिंग को बहुत नुकसान हुआ है. आधे से ज़्यादा क्लासरूम की छतों में से पानी का रिसाव हो रहा है. परिणाम स्वरूप बच्चे कक्षा में छतरी पकड़ने को मज़बूर हैं. 

कथित तौर पर, स्कूल में केवल सात कक्षाएं हैं जिनमें से तीन को छोड़कर ज्यादातर ख़राब हैं. 

छात्रों ने भी शिकायत की है कि इसकी वजह से उनकी पढ़ाई में बाधा आती है. 

क्लास की हालात के बारे में बात करते हुए एक बच्चा बोलता है, ‘हमें बारिश की वजह से बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार तो हमारे किताबें भी ख़राब हो जाती है.’ 

वहीं, कक्षा सात की एक छात्रा कल्पना कहती है, ‘छत टूटने की वजह से हम अपना छाता लेकर आते हैं.’ 

प्रधान, जिन्होंने दावा किया कि स्कूल में लगभग 170 बच्चे पढ़ते हैं, उन्होंने राज्य सरकार से सभी बच्चों को एक नई बिल्डिंग में शिफ्ट करने के लिए अनुरोध किया. 

राज्यों में सरकारी स्कूलों को ऐसी अवस्था में देख बहुत दुःख होता है. हाथों में पेन और पेंसिल के बजाय, छात्रों को छाता रखने के लिए मजबूर किया जा रहा है. बेहतर बुनियादी ढांचे के बजाय, बुनियादी आवश्यकताओं की ही लड़ाई चल रही है. 

जब स्कूल जैसी महत्वपूर्ण संस्था की मूलभूत सुविधाएं ही बेहतर तरीक़े से नहीं है तो हम अच्छे कल के बारे में कैसे सोच सकते हैं? 

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