पूरी दुनिया इस समय कोरोना वायरस से जूझ रही है. लोग परेशान हैं, घरों में बंद हैं. दुनिया में कई हज़ार मौतें हो चुकी हैं, कई लाख लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं और अभी तक इस वायरस का कोई इलाज नहीं मिला है. भारत में भी कोरोना को मात देने के लिए 14 अप्रैल तक लॉकडाउन किया गया है, जिसके कारण लोगों का घरों से बाहर निकलना मना है. लोगों को वर्क फ़्रॉम होम (Work From Home) दिया गया है.
जब 24 मार्च, 2020 को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा की, तो लोग राशन इकठ्ठा करने में जुट गए, वहीं देश का एक तबका ऐसा भी था जिसे अपने अलगे दिन की रोटी की चिंता सताने लगी. ये तबका कोई और नहीं देश के बड़े-बड़े शहरों में काम करने वाले मज़दूर हैं. फ़ैक्टरीज़ बंद हो गईं, इनकी दिहाड़ी मज़दूरी ख़तम हो गई, दो जून की रोटी की किल्लत होने लगी, तो ये मज़दूर तबका अपने सामान की गठरी बांध कर परिवार सहित अपने गांव की ओर निकल पड़ा. न कोई गाड़ी, न कोई और वाहन ही था, पर ये मज़दूर मीलों का सफ़र पैदल तय करने को तैयार हो गया.
लॉकडाउन ने इनका काम-धंधा छीन लिया है, इनके पास खाने को पैसे नहीं हैं. परिवार के भरण-पोषण के लिए इनके पास कोई चारा नहीं है. हालांकि, कई राज्यों की सरकारें और देश की सरकार व कई संस्थाएं और ग्रुप्स इनकी मदद के लिए आगे आये हैं. इन मज़दूरों के रहने और खाने-पीने के लिए कई अस्थाई गृह बनाये गए हैं. जहां ये लोग अपने परिवार के साथ रह सकते हैं. इनकी मदद के लिए एक सुविधा ये भी की गई है कि इनको इनके घरों तक खाने के पैकेट पहुंचाने का काम भी हो रहा है. इसके लिए गरीबों की जानकारी के अनुसार खाना पहुंचाया जा रहा है.
वैसे तो हर राज्य में ये सुविधा कोरोना प्रभावित ग़रीबों/मज़दूरों के लिए शुरू की गई है, लेकिन इस सुविधा का लाभ वो लोग भी उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जो आर्थिक रूप से संपन्न हैं और अपने-अपने घरों में हैं. जी हां, हाल ही में राजस्थान पत्रिका में छपी एक ख़बर के मुताबिक़ आर्थिक रूप से संपन्न लोग नगर निगम द्वारा दिए गए टोल-फ़्री नंबर पर काल करके खाने के पैकेट मंगवा रहे हैं. ये लोग अपने पूरे परिवार के लिए इन नंबरों पर कॉल करके खाना मंगवा रहे हैं.
इस बात का खुलासा तब हुआ जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में सरकारी कर्मचारी खाने का पैकेट पहुंचाने के लिए एक लोकेशन पर पहुंचे, वहां उन्होंने देखा उस लोकेशन पर पार्किंग में बड़ी-बड़ी गाड़ियां खड़ी थीं और जिसके घर में खाने का पैकेट देना था वो भी काफ़ी संपन्न परिवार था. मतलब कि ये संपन्न लोग मुश्किल की इस घड़ी में भी गरीबों के मुंह से खाना छीनने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. खाना पहुंचाने वाले कर्मी इनको खाना देने को मजबूर हैं पर साथ ही वो इनसे दोबारा ऐसा न करने की अपील भी कर रहे हैं. क्योंकि वो खाना उनके लिए है जो इस वक़्त कोरोना की मार झेल रहे हैं. जिनके पास इस समय आजीविका का कोई साधन नहीं है.
वहीं इस बाबत रायपुर के पीआर अधिकारी आशीष मिश्रा ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि जो लोग भोजन के पैकेट घर तक मंगाने के लिए फ़ोन करते हैं, उसमें 10 से 15 लोग ऐसे होते हैं, जो पूरी तरह से संपन्न हैं. ये लोग गरीब होने का बहाना कर खाने के पैकेट ऑर्डर करते हैं. इसके साथ ही आशीष मिश्रा बताते हैं कि संपन्न परिवार से आने वाले ये लोग अधिकतर ये कहते हैं उनके पास घर पर खाना नहीं है, और ऐसा इसलिए क्योंकि लॉकडाउन के कारण खाना बनाने वाली बाई नहीं आ रही है. दूसरी तरफ़ कुछ महिलायें अपने पति की बीमारी का हवाला देते हुए ये कहती हैं कि उनको खाना बनाने का समय नहीं मिल रहा है.
अब ऐसे लोगों को क्या ही कहा जाए, जिन्हें ज़रा सी भी शर्म नहीं आती ये जानते हुए कि अपनी इस हरकत से वो किसी ग़रीब के मुंह का निवाला छीन रहे हैं. वो भी बस इसलिए क्योंकि उनके घर बाई नहीं आ रही है और उनको थोड़ा सा भी काम नहीं करना है. मतलब कुछ तो शर्म कर लो.