समाज की दकियानूसी सोच के विरुद्ध, इस रिक्शावाले ने मां की आंखें दान कर संवारी दो लोगों की ज़िन्दगी

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किसी भी नेक काम के प्रति समर्पित होना ये दर्शता है कि आपकी समाज के प्रति क्या सोच है. नेक काम करने के लिए अमीरी या ग़रीबी नहीं देखी जाती. कोलकाता के एक रिक्शा चालक बरुन चक्रवर्ती ने भी कुछ ऐसा कर दिखाया है, जिससे हर इंसान सीख ले सकता है.

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बरुन चक्रवर्ती अपनी पत्नी, एक बेटे और एक बेटी के साथ कोलकाता के दमदम इलाके में रहता है. परिवार का एकमात्र कमाने वाला सदस्य होने के नाते उस पर जिम्मेदारियां भी बहुत हैं. बेटी की शादी के लिए पैसे बचाने हैं, तो बेटे को स्कूल भी भेजना है. इन सब मुश्किलों के बावजूद बरुन परिवार की हर ज़रूरत को पूरा करने के लिए सुबह से लेकर शाम तक रिक्शा चलाता है.

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दरअसल, 16 जून को बीमारी के चलते बरुन की मां बेला चक्रवर्ती का देहांत हो गया था. इसके बाद बरुन ने अपनी मां की आंखें दान करने का फ़ैसला लिया. लेकिन ज़्यादा पढ़े लिखे न होने के कारण बरुन के पड़ोसी ने कहा कि अगर वो ऐसा करेंगे, तो अगले जनम में उनकी मां अंधी पैदा होंगी और उनकी आत्मा को भी शन्ति नहीं मिलेगी. अपने जानने वाले की इन बातों से बरुन थोड़ा घबरा गया.

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लेकिन बरुण ने फ़ैसला कर लिया था कि वो अपनी मां की आंखें ज़रूर दान करेगा. इसके बाद उसने किसी डॉक्टर से परामर्श लेने का फ़ैसला लिया. इस पर डॉक्टरों ने उन चिंताओं को आधारहीन बताते हुए कहा कि अगर आप नेत्र दान करते हैं, तो आपकी मां की आंखों से दो लोगों को नयी ज़िन्दगी मिल सकेगी. इसके बाद बरुन ने अपनी मां की आंखे दान कर दी.

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टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, पति की मृत्यु के बाद बरुन की मां ने उनके पांच भाई-बहनों को अकेले पाला. उनसे जितना हो पता था उतना पढ़ाया लिखाया भी. मां की कड़ी मेहनत की बदौलत ही सभी बच्चे अपने अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं.

किसी की ज़िंदगी में उजाले की किरण लाने के लिए बरुन का तहे दिल से शुक्रिया.

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