सचिन 5 साल में पहली बार राज्यसभा में बोलने वाले थे, पर उन्हें समझ आ गया कि ये राजनीति नहीं आसान

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साल 2012. क्रिकेट के मास्टर ब्लास्टर और भारत रत्न से सम्मानित सचिन तेंदुलकर राज्यसभा में मनोनीत किए गए थे. क्रिकेट के बाद राजनीति की अपनी नई पारी में सचिन कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाए. कई लोगों ने संसद में उनकी बेहद कम हाज़िरी को लेकर सवाल उठाए लेकिन पांच साल बाद पहली बार जब सचिन राज्यसभा में बोलने के लिए तैयार हुए तो भी उन्हें बोलने नहीं दिया गया. विपक्ष के हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई और ‘राइट टु प्ले’, यानी ‘खेलने के अधिकार’ पर सचिन तेंदुलकर के विचार जानने से देश वंचित रह गया.

इसी साल अक्टूबर को सचिन ने पीएम मोदी को लेटर लिखा था. इस लेटर में इंटरनेशनल स्तर पर पदक जीतकर लाने वाले हर खिलाड़ी को केंद्र सरकार की एक योजना CGHS का पात्र बनाए जाने का आग्रह किया था. सचिन ने अपने खत में हॉकी के पूर्व खिलाड़ी मोहम्मद शाहिद का ज़िक्र करते हुए जानकारी दी थी कि वो अपने अंतिम दिनों में बीमारी से जूझ रहे थे.

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राज्यसभा के सभापति वैंकेय्या नायडू ने सचिन को बोलने के लिए कहा लेकिन पहले से ही गुस्से में मौजूद सांसदों ने शोर मचाना शुरू कर दिया. सचिन 10 मिनट तक खड़े रहे, नायडू सांसदों को शांत कराते रहे. जैसे ही सचिन मुंह खोलते, हंगामा बढ़ने लगता. तंग आकर नायडू को सेशन स्थगित करना पड़ा.

तेंदुलकर पीएम मोदी से पहले इस मुद्दे को इससे पहले खेल मंत्रालय और स्वास्थ्य मंत्रालय दोनों के साथ उठा चुके हैं. माना जा रहा था कि सचिन अपने भाषण में खेल और खिलाड़ियों की दशा और उनके लिए भारत में की गईं व्यवस्थाओं का ज़िक्र भी करने वाले थे. इसके अलावा ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी किस प्रकार बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, सचिन इस पर भी चर्चा करना चाहते थे.

लेकिन सचिन को शायद समझ आ गया होगा कि क्रिकेट की पिच और राजनीति की पिच में बहुत अंतर होता है और क्रिकेट से इतर राजनीति की पिच पर बैटिंग करने के लिए बहुत तिकड़म भिड़ानी पड़ती है.

Source: Times of India 

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