न्यूयॉर्क के फ़्रंटलाइन वर्कर्स की सेवा में लगा सिख समुदाय, अस्पतालों में बांट रहा है पिज़्ज़ा

Abhay Sinha

मानव सेवा परमो धर्म: सिख समुदाय इसकी जीती जागती मिसाल है. ये समुदाय दुनिया में कहीं भी हो, पर मानवता के प्रति अपना फ़र्ज निभाना कभी नहीं भूलता है. डेट्रायट शहर के रहने वाले शैलेंद्र सिंह भी इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. कोरोना महामारी के पहले वो यहां के स्थानीय गुरुद्वारे में रविवार को अपना समय गुज़ारते थे. यहां हर रोज़ 300 से ज़्यादा लोगों को खाना खिलाया जाता था. 

हालांकि, कोरोना वायरस के चलते अब ऐसा संभव नहीं हो पा रहा, लेकिन कहते हैं न जहां चाह, वहीं राह भी होती है. शैलेंद्र सिंह ने भी कुछ ऐसा ही किया. सिंह और उनके परिवार ने कोरोना वॉरियर्स की सेवा को ही अपना धर्म समझा और अस्पतालों, पुलिस स्टेशनों और फ़ायर डिपार्टमेंट में सैकड़ों पिज़्ज़ा का न सिर्फ़ पैसा चुकाया बल्क़ि ख़ुद डिलिवर भी करते हैं. 

40 वर्षीय शैलेंद्र सिंह ने कहा, ‘ये अचानक ही मेरे दिमाग में आया कि ये समय फ़्रंटलाइन में काम कर रहे हमारे हीरोज़ के लिए कुछ करने का है.’ 

‘मैंने कुछ डॉक्टरों से बात की तो उन्होंने बताया कि वो 12 से 16 घंटे काम करते हैं, उनके पास बैठकर खाने तक का वक़्त नहीं होता है. ऐसे में पिज़्ज़ा सबसे बढ़िया विकल्प है.’ 

सिंह के साथ ही 12 वर्षीय अर्जुन और 14 वर्षीय बानी भी अप्रैल की शुरुआत से अब तक 1 हज़ार से ज़्यादा पिज़्ज़ा बांट चुके हैं. आगे भी इसे जारी रखने की योजना है. सिंह अपना बिज़नेस भी चलाते हैं, इसलिए हफ़्ते में एक दिन वो पिज़्ज़ा डिलिवर करने के लिए एक घंटा ड्राइव करते हैं. उन्होंने कहा कि वे उन इलाकों में जाते हैं, जहां ज़्यादा खाना उपलब्ध नहीं है. 

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लेकिन फिर महामारी के चलते सारा काम बंद पड़ गया. ऐसे में जपनीत का दिल क्वींस के दक्षिण ओजोन पार्क पड़ोस में एल्महर्स्ट अस्पताल केंद्र में हताश कर्मचारियों और कोविड-19 से प्रभावित अन्य अस्पतालों में लग गया. 

उन्होंने कहा, ‘भोजन हमेशा चीज़ों को बेहतर बनाता है, इसलिए मैंने एल्महर्स्ट अस्पताल में काम करने वाले अपने एक दोस्त से पूछा कि हम किया कर सकते हैं? उसने कहा कि पिज़्ज़ा बहुत अच्छा रहेगा. तब से, हमने पीछे मुड़कर नहीं देखा.’ 

जपनीत ने मार्च के अंत में पिज़्ज़ा डिलिवर करना शुरु किया, उनके मुताबिक़ उन्होंने अबतक 1 हज़ार या उससे भी अधिक पिज़्ज़ा बांटे हैं. वे पूरे शहर के अस्पतालों में हफ़्ते में दो या तीन चक्कर लगा लेते हैं. साथ ही वो अन्य फ़्रंटलाइन में काम करने वाले और बेघर लोगों को भी खाना उपलब्ध कराते हैं. 

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हालांकि, इस काम में बहुत पैसे की ज़रूरत पड़ती है. जपनीत ने बताया कि वो इसका खर्च अपनी जेब से उठा रहे थे, लेकिन ये काफ़ी नहीं था. ऐसे में सोशल मीडिया ने बड़ी मदद की है. वो छोटे-छोटे क्लिप डालते हैं और लोगों से पूछते हैं कि अब कहां जाया जाए. बता दें, उन्हें क़रीब 2 हज़ार डॉलर की डोनेशन मिल चुकी है. 

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