CAA-NRC के ख़िलाफ़ हो रहे देशव्यापी धरने प्रदर्शनों की वजह से पाकिस्तान के मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की क्रांतिकारी नज़्म ‘हम देखेंगे’ चर्चा में है.
1979 में लिखी गई इस नज़्म के चर्चा में होने की वजह प्रदर्शनकारियों द्वारा इसकी पंक्तियों को नारे की तरह इस्तेमाल करना और कुछ दक्षिणपंथी समूहों द्वारा इस नज़्म के कुछ हिस्से को हिन्दू मान्यता का विरोधी मानना है.
इस बीच ट्विटर पर @StuteeMishra नाम के हैंडल से एक वीडियो अपलोड की गई है, जिसमें Indian Institute Of Mass Communciation के कुछ छात्र फ़ैज़ की नज़्म का एक हिस्सा 14000 फ़ीट की ऊंचाई पर गा रहे हैं.
इस वीडियो को 22,000 से ज़्यादा बार देखा गया है और इसे लगभग दो हज़ार लोगों ने पसंद किया है.
फ़ैज़ की नज़्म को अपनी आवाज़ में गाने की शक़्ल देने वाले देवेश मिश्रा ने इसे 3 जनवरी को फ़ेसबुक पर शेयर किया था.
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की इस नज़्म का असली नाम ‘व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक’ है लेकिन इसे दुनिया-जहान में ‘हम देखेंगे’ नाम से ही ख़्याति मिली.
साल 1985 में भी ये नज़्म चर्चा का केंद्र बनी थी, जब मशहूर पाकिस्तानी गुलकारा इक़बाल बानो ने जनरल ज़िया उल हक़ के फ़रमान के विरोध में लगभग 50,000 लोगों के सामने साड़ी पहन कर इसे गाया था (पाकिस्तान में साड़ी पहनना हिन्दू प्रतीक समझा जाता है).
वर्तमान में सोशल मीडिया पर ये ख़बर चली थी कि IIT कानपुर द्वारा इस बात की जांच की जाएगी कि ये नज़्म हिन्दू मान्यताओं के विरोध में है या नहीं, हालांकि IIT कानपुर ने ऐसी ख़बरों का खंडन किया है.