मखमली जूतों से रास्ता तय करने वालों को अक्सर आपदाएं अवसर नज़र आती हैं. लेकिन जिनके पैरों के तलवे पहले ही उधड़ चुके होते हैं, उनके लिए आज भी आपदाएं तबाही ही लाती हैं. जिस गर्म ज़मीन पर कभी उनकी ख़ून से सनी एड़ियां रगड़ती थीं, आपदाओं में उसी ज़मीन पर उनके जिस्म का मांस पिघलता दिखाई देता है.
कोरोना महामारी के दौरान हमने ऐसे कई दिल दहला देने वाले मंज़र देखे, जब सरकारों ने ग़रीबों को आत्मनिर्भरता का पाठ पढ़ाकर मरने के लिए छोड़ दिया था. बेघर, बेरोज़गार, भूख से तड़पते लोग अपने ही देश में प्रवासी बन गए थे. मगर उस वक़्त कुछ लोग ऐसे भी थे, जो इन बेसहारों का सहारा बने थे.
तमिलनाडु की 80 साल की कमलाथल अम्मा भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं. इस उम्र में भले ही उन्हें ये दुनिया धुंधली नज़र आती हो, फिर भी वो लोगों की तकलीफ़ साफ़ देख सकती हैं. यही वजह है कि वो महज़ 1 रुपये में ग़रीब मज़दूरों का पेट भरने का काम कर रही हैं.
कमलाथल अम्मा पिछले क़रीब 30 सालों से सिर्फ़ एक रुपये में लोगों को इडली खिलाती आ रही हैं और लॉकडाउन के मुश्क़िल समय में भी उन्होंने इसे जारी रखा और आज भी उन्होंने अपनी इडली का दाम एक पैसा भी नहीं बढ़ाया है. अम्मा का मानना है कि कोई भी इंसान भूखे पेट नहीं रहना चाहिये.
India Today से बात करते हुए कमलाथल अम्मा ने बताया, ‘कोविड-19 शुरू होने के बाद से स्थिति थोड़ी मुश्किल हुई है, लेकिन मैं आज भी ग़रीबों को 1 रुपये में इडली देने की कोशिश कर रही हूं. इडली की सामग्री के प्राइज़ बढ़ गए हैं, लेकिन मैं इडली के दाम नहीं बढ़ाऊंगी.’
बता दें, लॉकडाउन के दौरान भी अम्मा का ये काम सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों तक पहुंचा था. उस वक़्त बहुत से लोग मदद के लिए सामने भी आए थे. सेलिब्रिटी शेफ़ विकास खन्ना भी अम्मा की मदद के लिए आगे आए और उन्होंने 350 किलो चावल भिजवाए थे.
कमलाथल अम्मा ने साबित कर दिया कि अगर वाकई में आपदा अवसर होती है तो फिर वो मुनाफ़ा कमाने के लिए नहीं बल्कि लोगों की तकलीफ़ों में खड़े होने का, उनकी मदद करने का, किसी के काम आने का और किसी बेसहारा का सहारा बनने का अवसर होती है.