बंद हो चुके स्कूल को 5 अध्यापकों ने दिया नया जीवन, बचाये हुए पैसों से बनवाई बच्चों के लिए क्लास

Sumit Gaur

सरकारी स्कूलों की हालत क्या है? वो किसी से छिपी नहीं है. कहीं स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए डेस्क नहीं है, तो कहीं बच्चे ही टीचर की अनदेखी का शिकार होते हैं. सबकुछ जानने के बावजूद सिर्फ़ वही लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं, जो प्राइवेट स्कूलों की महंगी-महंगी फ़ीस का ख़र्च नहीं उठा सकते.

महाराष्ट्र के रिसोद तालुका का नावली ज़िला परिषद स्कूल भी कुछ साल पहले तक ऐसी ही बदहाली का शिकार था. स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई टीचर तक मौजूद नहीं था. लोगों को अपने बच्चों को पढ़ने के लिए 30 किलोमीटर दूर दूसरे शहर भेजना पड़ता था, जिसका ख़र्च उठाना हर परिवार के बस में नहीं था. सरकार और प्रशासन की इस अनदेखी से 145 बच्चों का भविष्य अधर में लटकता हुआ दिखाई दे रहा था.

ऐसे में गांव के लोगों ने डिस्ट्रिक्ट ऑफ़िस के बाहर प्रदर्शन किया और अधिकारियों को समझाया कि गांव में अकेला स्कूल होने की वजह से इसका शुरू होना ज़रूरी है. इसके बाद शिक्षा विभाग ने नारायण गर्दे (हेडमास्टर), सुभाष सदर, कृष्णा पलोड, राहुल सखारकर और गजानन जाधव को यहां बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजा.

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जब इन पांचों लोगों ने स्कूल की कमान संभाली, तो यहां क्लासरूम के नाम पर छत से पानी टपकने वाला एक कमरा था, जिसमें एक ही समय में दो क्लास को पढ़ाना था. इस चुनौती को पांचों ने स्वीकारा और अपने बचाये हुए पैसों में से 1.5 लाख रुपये इकट्ठा किये. बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करने के लिए इन पैसों से स्कूल की दीवारों को पेंट कराया और पानी के लिए वाटर प्यूरीफ़ायर लगाया. इसके बावजूद स्कूल में कई बुनियादी सुविधाओं की कमी थी, जिन्हें पूरा करने के लिए एक बार पैसों की दिक्कत सामने आई. इस बार गांव वालों खुद कमान संभाली और चंदा इकट्ठा करके 3 लाख रुपये जमा किये.

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गांव वालों की मदद और पांचों अध्यापकों के हौसलों की बदौलत ही आज इस स्कूल में बिना किसी सरकारी मदद के 7 क्लास, 1 कंप्यूटर लैब, टॉयलेट और पीने का पानी मौजूद है. इन्हीं अध्यापकों की बदौलत आज स्कूल में बच्चों की संख्या 150 से बढ़ कर 415 हुई है.

गांव में ही रहने वाले एक शख़्स खुशाल बाजाद का कहना है कि ‘इन अध्यापकों की वजह से ही स्कूल दोबारा ज़िंदा हो पाया है. आज यहां हर दिन कोई न कोई एक्टिविटी होती रहती है, जिसकी वजह से बच्चे भी हर दिन स्कूल जाते हैं.’

इन अध्यापकों ने अपने फर्ज़ को यहीं नहीं रोका, बल्कि स्कूल में इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स की भी शुरुआत की और बच्चों को प्रतियोगिताओं के लिए भी तैयार करना शुरू किया. 

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