Statue of Unity: देश में दुनिया का सबसे बड़ा स्टैच्यू होना गर्व की बात है, लेकिन किस कीमत पर?

J P Gupta

देश का जो आज हम मानचित्र देखते हैं उसे बनाने का श्रेय जाता है लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल को. कल उनके जन्मदिन यानि 31 अक्टूबर को पीएम मोदी ने ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ का उद्घाटन किया. सरदार पटेल की ये मूर्ति दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है. इसकी ख़ुशी पूरे देश में मनाई जा रही है. मगर जिस राज्य से सरदार पटेल थे, जहां ये प्रतिमा बनी है, उस इलाके के कुछ लोग इस जश्न में शामिल नहीं हुए. वजह है वो ज़मीन जिस पर इसे बनाया गया है, जो उनकी रोज़ी-रोटी का ज़रिया है.

NewsClick में छपी खबर के अनुसार, नर्मदा की जिस ज़मीन पर ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ बना है वो ज़मीन वहां रहने वाले आदिवासियों की थी. इतना ही नहीं सरदार सरोवर पर बने बांध की वजह से आस-पास रह रहे लोगों के घरों और खेतों पर डूबने का ख़तरा मंडरा रहा है.

पीएम मोदी को लिखा खुला ख़त

नर्मदा ज़िले के करीब 75000 लोगों ने इस परियोजना के उद्घाटन का विरोध किया. और प्रतिमा के अनावरण के दिन इन आदिवासियों और किसानों के घरों में खाना नहीं बना. खाना न बनने का कारण (एक पुरानी परंपरा के अनुसार, जब किसी के घर में मौत हो जाती है तो उस घर में खाना नहीं बनता.) रहा. NewsClick में छपी खबर में ये भी बताया गया है कि इस परियोजना की वजह से 72 गांव प्रभावित हुए हैं और इनमें से 22 गांव के सरपंचों ने पीएम मोदी को एक खुला ख़त भी लिखा है. इससे पहले वो ज़िला अधिकारी और सीएम तक अपनी बात पहुंचा चुके हैं. मगर वहां उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई.

सरदार पटेल के जन्मदिन पर मूर्ति की ओपनिंग सेरेमनी में हिस्सा न लेने और उसका विरोध करने का फ़ैसला सभी गांव के सरपंचों ने पहले ही ले लिया था. और इसके लिए सभी गांव वाले पहले ही तैयार थे. उनका कहना है कि देश के निर्माण में किए गए सरदार पटेल के योगदान की वो कद्र करते हैं. उनकी जितनी तारीफ़ की जाए कम है. लेकिन ये परियोजना उनके और उनके परिवार के ख़िलाफ है.

एक बार उन किसानों के बारे में सोच लेना चाहिए, जिनकी वकालत सरदार पटेल भी करते थे. इस परियोजना की वजह से हज़ारों आदिवासियों के सामने आजिविका का संकट उत्पन्न हो गया है.

मुआवज़े के नाम पर मज़ाक

इतना ही नहीं ये बात भी सामने आई है कि सरकार मुआवजे़े के नाम पर भी उन किसानों और आदिवासियों को ठेंगा दिखा रही है. यहां 1 एकड़ ज़मीन की क़ीमत 1 करोड़ रुपये है, जबकि सरकार मुआवजे़े के नाम पर सिर्फ़ 5 लाख रुपये दे रही है. यहां तक पहुंचने के लिए बनाए गए हाइवे के कारण पीने के पानी की पाइप लाइन टूट गई है. पर सरकार है कि पानी और लोगों की ज़रूरतों की चिंता करने की बजाए अपनी ज़िद पर अड़ी है.

शुरूआत से कर रहे हैं विरोध

इस समुदाय के एक नेता प्रफुल वसावा ने बताया कि वो लोग साल 2010 से ही इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं. यहां पर लगाए गए पोस्टरों को भी इन्होंने फाड़ दिया था. लेकिन अब फिर से नए पोस्टर लगा दिए गए हैं और उनकी सुरक्षा में पुलिस को तैनात कर दिया गया है.

सरदार पटेल हमेशा किसानों के हित के लिए उनके साथ खड़े रहते थे. ऐसे में जब उनकी प्रतिमा के चलते हज़ारों किसानों का घर उजड़ रहा हो और सरकार कुछ न कर रही हो, तब इसे उनके आदर्शों की अवहेलना ही कहा जाएगा. क्या ये उनकी सोच और विचारों के साथ धोखा नहीं होगा.

ये सच में एक विचाराधीन मुद्दा है. ये भी सच है कि भारत के लिए सरदार पटेल का स्टैच्यू होना देश और देशवासियों के लिए गर्व की बात है…दुनिया का सबसे बड़ा होना स्टैच्यू होना और ही गर्व की बात है, हम सब इसका स्वागत करते हैं. लेकिन किस कीमत पर ये सोचा है?

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