बच्चे स्कूल आना न छोड़ें इसलिए पीटी टीचर ने ही संभाल ली स्टियरिंग, रोज़ स्कूल छोड़ने जाते हैं

J P Gupta

अमूमन किसी स्कूल के पीटी टीचर के बारे में यही राय होती है कि, उनको कुछ काम ही नहीं होता. वो बस प्रेयर करवाते हैं और एक दो-क्लास. इसके बाद वो सारा दिन खाली रहते हैं. ऐसे लोगों को कर्नाटक के राजाराम के बारे में ज़रूर जानना चाहिए, जो अपने स्कूल और बच्चों की ख़ातिर बस ड्राइवर बन गए.

ये पूरा मामला कर्नाटक के उडुपी का है. यहां के बराली हायर सेकेंड्री स्कूल में दिन पर दिन बच्चों की तादाद गिरती ही जा रही थी. ये बात स्कूल के फ़िजिकल एज़ुकेशन टीचर को खलती थी. इसका कारण लगाने के लिए उन्होंने गांव वालों से बात की. जिसका नतीजा ये था कि गांव वाले अपने बच्चों को उसी स्कूल में भेजते थे, जो बस की सुविधा उपलब्ध कराए.

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इतना ही काफ़ी नहीं था

क्योंकि आस-पास के गांव से स्कूल काफ़ी दूर थे और यहां जाने के बच्चों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था. ये जानने के बाद राजाराम ने अपने कुछ दोस्तों की मदद से एक स्कूल बस का इंतज़ाम किया. मगर इतना ही काफ़ी नहीं था. बस के लिए ड्राइवर और इसके मेंटेनेंस का भी ख़र्चा उठाना एक समस्या थी. चूंकी विद्यालय के पास फंड की कमी थी, ऐसे में राजाराम ने ही बस ड्राइवर का काम अपने हाथों में ले लिया.

राजाराम ने बैंगलौर मिरर से बात करते हुए कहा- मेरा घर स्कूल के ही करीब है, इसलिए मैंने स्कूल बस को चलाने की ज़िम्मेदारी ले ली. इससे बच्चों की सुरक्षा की चिंता भी हल हो गई और स्कूल का ड्रॉप आउट रेट भी कंट्रोल में आ गया.
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गणित और विज्ञान की लेते हैं क्लास

राजाराम पिछले 2 वर्षों से ये काम पूरी शिद्दत से करते आ रहे हैं. यही नहीं, वो अपने स्कूल के में बच्चों को गणित और विज्ञान भी पढ़ाते हैं. उनकी इस सराहनीय पहल का ही नतीजा है कि अब स्कूल में बच्चों की संख्या 60 से 90 हो गई है.

स्कूल की प्रिंसिपल ने इस बारे में बात करते हुए कहा- हमारे स्कूल में सिर्फ़ 4 टीचर्स हैं और राजाराम अपने काम के प्रति बहुत ही प्रतिबद्ध हैं. ये दूसरा साल है जब वो एक पीटी टीचर और ड्राइवर दोनों का रोल निभा रहे हैं. जब कभी उन्हें छुट्टी लेनी होती है, तो वो इस बात का ख़्याल रखते हैं कि बच्चों के ट्रांस्पोर्टेशन में कोई परेशानी न हो.

राजाराम जैसे टीचर्स की जितनी तारीफ़ की जाए कम है. साथ ही राज्य सरकार को भी इस संदर्भ में उचित कदम उठाने चाहिए. क्योंकि अगर सरकारी स्कूल इसी तरह स्टाफ़ और फंडिंग की कमी से झूझते रहे, तो देश के सरकारी स्कूलों में ताले लगते दिखाई देंगे. 

Source: Bangaloremirror

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