WHO की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ध्वनि प्रदूषण की वजह से लोगों में हार्ट अटैक और मानसिक विकारों का ख़तरा बढ़ जाता है. केन्या में हुए एक सर्वे में ये सामने आया है कि ध्वनि प्रदूषण में 10 डेसिबल का बढ़ावा होने पर उसका असर लोगों की प्रोडक्टिविटी पर पड़ता है.
हम ये सारी बातें आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि हमारे देश के बड़े शहरों में दिन-प्रतिदिन ध्वनि प्रदूषण की समस्या बढ़ती ही जा रही है. हाल ही में आई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है. इसके अनुसार, चेन्नई वो शहर है जहां के लोग सबसे अधिक ध्वनि प्रदूषण से परेशान हैं.
इस रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई में ध्वनि प्रदूषण का स्तर औसतन 67.8 डेसिबल रहा. इसके बाद हैदराबाद(67.1), कोलकाता(66.6), बेंगलुरु(64.9), मुंबई(64.3) दिल्ली(61.3) जैसे शहरों का नंबर है. इसका मतलब ये है कि देश के इन 6 बड़े महानगरों में रहने वाले लोगों पर ध्वनि प्रदूषण से होने वाली बीमारियों का ख़तरा मंडरा रहा है. यही नहीं इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी दिखाई देगा. क्योंकि बीमार लोग यानी कम प्रोडक्टिविटी.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि रेज़िडेंसियल इलाके में शोर का स्तर 55 डेसिबल से अधिक और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए. कुछ समय पहले बढ़ते ध्वनि प्रदूषण से की समस्या से निपटने के लिए मुंबई की ट्रैफ़िक पुलिस ने अनोखा तरीका निकाला था.
उन्होंने ट्रैफ़िक सिग्लन के टाइमर को डेसिबल मीटर से जोड़ दिया था. ऐसे सिग्नल पर खड़े लोग अगर बे वजह हॉर्न बजाते और ये 85 डेसिबल से ऊपर पहुंच जाता तो सिग्नल का टाइमर रिसेट हो जाता और लोगों को अधिक देर तक इंतज़ार करना पड़ता. उनका ये तरीका काम भी कर कर गया.
ध्वनि प्रदूषण की समस्या से निपटने के लिए हमें ऐसे ही उपायों की ज़रूरत है.