दलित की बेटी की शादी में बैंड क्या बज गया, ऊंची जाति वालों ने कर दी नीच हरकत

Sanchita Pathak

हम कितनी भी उन्नति क्यों न कर लें, कुछ ऐसी बातें हैं जो हमें आगे नहीं बढ़ने देती. बाहरवाले हमें यूं ही गरीब नहीं बोल जाते. आधुनिकता के नाम पर कई संसाधन जुटा लिए हैं, पर सोच वहीं की वहीं है. आज भी न जाने कितने घर हैं, जहां अपने से छोटी या दूसरी जाति के लोगों के लिए अलग बर्तन होते हैं. कई घरों में तो बैठने का स्थान भी निश्चित होता है.

जाति-व्यवस्था पर हम लेक्चर नहीं देंगे, क्योंकि समझदार आप सब हैं. समझना नहीं चाहते ये अलग बात है.

Steve Mccurry

मध्य प्रदेश के आगर मालवा जिले के माना गांव में घटी एक घटना ने एक बार फिर इंसानियत को शर्मसार किया है. दलितों को खिलाफ़ ऊंची जाति के लोगों द्वारा हिंसा की कई घटनाएं सामने आती रहती हैं. पर आगर मालवा के रहने वाले सवर्णों ने अपना गुस्सा ठीक वैसे ही निकाला कि सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी.

गांव के ही एक दलित, 45 वर्षीय चंदेर मेघवाल ने, अपनी बेटी, ममता की शादी के लिए बैंड पार्टी की व्यवस्था की थी. सवर्णों द्वारा समाज से बहिष्कृत किए जाने की चेतावनी के बावजूद चंदेर ने ये दुस्साहस किया. गांव के नियमों के अनुसार दलित समाज के लोग, बारात का स्वागत सिर्फ़ ढोल से कर सकते हैं, पर चंदेर ने नियमों का उल्लंघन किया. सारी घटना की सूचना चंदेर ने पुलिस को दी थी, इसलिए ममता की शादी भी शांतिपूर्वक हो गई.

इधर सवर्णो से ये देखा नहीं गया कि उनकी चेतावनी के बावजूद, कोई बैंड पार्टी कैसे बुला सकता है? कोई और चारा न देखकर, तैश में आकर सवर्णों ने दलितों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कुएं में मिट्टी का तेल डाल दिया. बारातियों के स्वागत का खामियाज़ा सारे दलित परिवारों को भुगतना पड़ा.

दलितों ने पीने के पानी की व्यवस्था करने के लिए कालीसिंध नदी के तट पर ही एक गड्ढा खोदा और उस गड्ढे के पानी को पीने लगे. बिना किसी से शिकायत किए, दलितों ने कुएं का दूषित पानी भी पंप से निकाल लिया.

कलेक्टर और पुलिस सुप्रिटेंडेंट समेत अन्य आला अधिकारी उस गांव में गए और दलितों को आश्वस्त करने के लिए उस कुएं का पानी भी पिया. कलेक्टर बाबू ने दो बोरवेल खुदवाने की घोषणा की और सवर्णों को भी समझाया.

इस जाति की आग में न जाने हम सब कब से झुलस रहे हैं. एक तरफ़ तो अंबेडकर की मूर्ति पर हार पर हार चढ़ाते जाते हैं और दूसरी तरफ़ ज़रूरतमंदों के लिए कुछ भी नहीं कर पाते. आरक्षण से अगर देश में दलितों का उत्थान हो जाता, तो ऐसी घटनाएं कभी सामने नहीं आती. उस सोच का क्या करेंगे जो हमारे दिमाग में बैठी हुई है. ज़रा सोचिए, सिर्फ़ गाजे-बाजे के लिए ऐसी अमानवीय हरक़त जायज़ है?

Source: HT

आपको ये भी पसंद आएगा
मिलिए Chandrayaan-3 की टीम से, इन 7 वैज्ञानिकों पर है मिशन चंद्रयान-3 की पूरी ज़िम्मेदारी
Chandrayaan-3 Pics: 15 फ़ोटोज़ में देखिए चंद्रयान-3 को लॉन्च करने का गौरवान्वित करने वाला सफ़र
मजदूर पिता का होनहार बेटा: JEE Advance में 91% लाकर रचा इतिहास, बनेगा अपने गांव का पहला इंजीनियर
कहानी गंगा आरती करने वाले विभु उपाध्याय की जो NEET 2023 परीक्षा पास करके बटोर रहे वाहवाही
UPSC Success Story: साइकिल बनाने वाला बना IAS, संघर्ष और हौसले की मिसाल है वरुण बरनवाल की कहानी
कहानी भारत के 9वें सबसे अमीर शख़्स जय चौधरी की, जिनका बचपन तंगी में बीता पर वो डटे रहे