धन्यवाद विराली! तुम्हारी कोशिशों के बाद शायद अब भारतीय रेलवे Disable-Friendly बन जाए

Akanksha Thapliyal

विश्व का पांचवा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क है भारतीय रेलवे. यूं तो रेलवे को भारत की लाइफ़लाइन कहा जाता है, लेकिन अभी भी हमारी रेल प्रणाली में ऐसी कई मूल-भूत कमियां हैं, जिनको इतने सालों में भी ठीक नहीं किया. ये बात और है कि रेलमंत्री, सुरेश प्रभु अपनी तरफ़ से रेलवे की बेहतरीन सेवाओं और बाक़ी Facilities के लिए कोशिशें कर रहे हैं. मूल-भूत सुविधाओं और बेसिक ज़रूरत में जिस चीज़ की सबसे बड़ी कमी दिखती है, वो है रेलवे का Disable-Friendly होना.

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भारत में अगर लाखों-करोड़ों लोग रेलवे से यात्रा करते हैं, तो उन यात्रियों में कई पैसेंजर्स वो हैं, जिनकी कुछ ख़ास शारीरिक ज़रूरतें हैं, लेकिन कितनी बार उन ज़रूरतों का ध्यान रखा जाता है?

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कुछ दिनों पहले एक NRI, विराली मोदी ने भारतीय रेलवे और मिनिस्ट्री ऑफ़ रेलवे को एक पत्र लिखते हुए रेलवे में दिव्यंगों को ध्यान में रखते हुए कुछ मूल-भूत बदलाव करने की बात उठायी थी.

विराली मोदी ख़ुद भी एक दिव्यांग हैं और भारतीय रेल में यात्रा करने के दौरान हुई असुविधा के बाद ही उन्होंने एक पेटिशन भी चलाई थी, जिसे अभी तक 96 हज़ार लोगों की सहमति भी मिल चुकी है.

और ख़ुशी की बात ये है की Union Minister for Women and Child Development मनेका गांधी ने विराली मोदी की इस पेटिशन (change.org) के साथ सहमति जताते हुए को रेलमंत्री सुरेश प्रभु से रेलवे में दिव्यांगों को ध्यान में रखते हुए बदलाव करने की मांग की. जिस पर सुरेश प्रभु ने फ़ौरन संज्ञान लेते हुए Tweet करते हुए कहा कि रेलवे जल्द ही ये बदलाव करने की तयारियां कर रही है.

ये सब सही दिशा में जा रहा है, पर एक सवाल है, जिसका जवाब दिया जाना ज़रूरी है, वो सवाल है की इतनी मूल-भूत ज़रूरत को अभी तक क्यों नज़रंदाज़ किया गया? लाखों रेल यात्रियों में कितने स्पेशल फिज़िकल ज़रूरतों वाले लोग यात्रा करते हैं और अभी तक उनके लिए कोई भी सुविधा का ध्यान नहीं रखा गया.

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निराली के साथ भी ऐसा ही हुआ, उन्हें चढ़ने-उतरने के लिए कुलियों की मदद लेनी पड़ती थी. कुली भी उन्हें उतारने के बहाने यहां-वहां हाथ लगाते थे और निराली कुछ बोल नहीं पाती थीं, क्योंकि वो उतरने के लिए उन्हीं पर निर्भर थीं. निराली के साथ जो हुआ, ऐसा कई महिलाओं और बच्चों के साथ भी सालों से हो रहा है. उन्होंने अपनी बात दुनिया के सामने रख इसे बदलने का निश्चय किया, तो आज कुछ कदम उठते दिख रहे हैं. वरना सालों से हर दिव्यांग यात्री को इन्हीं परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
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मॉडर्न ट्रांसपोर्ट सिस्टम के रूप में उभरी मेट्रो में ये सुविधायें हैं, लेकिन बसों, ट्रेन में अभी भी ये बदलाव आने बाक़ी हैं. हम आशा करते हैं कि देश ‘डिजिटल इंडिया’ बनने से पहले, Disable-Friendly इंडिया भी बने. 

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