लॉकडाउन में छिना पिता का रोज़गार, तो घर चलाने के लिए मोमबत्तियां बनाने लगा दृष्टिहीन बेटा

Abhay Sinha

क़िस्मत की मजबूरियों को इरादों की मज़बूती से मात देने का नाम ही ज़िंदगी है. बात छोटी सी है लेकिन समझ आ जाए तो टूटी नांव भी हौसलों की लहरों पर सवार होकर किनारा पा जाती है. हिमाचल के कांगड़ा जिले के रहने वाले एक दृष्टिहीन शख़्स ने न सिर्फ़ इस बात को समझा, बल्कि ख़ुद की ज़िंदगी में इसका पालन भी किया. 

इस शख़्स का नाम है मनोज कुमार. बचपन से ही दृष्टिहीन 24 वर्षीय मनोज हिमाचल के रहने वाले हैं, लेकिन चंडीगढ़ में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं. लॉकडाउन के दौरान वो घर में ही फंस गए. परिवार में माता-पिता के अलावा एक एक बड़ी बहन अनु भी है, जो जन्म से दृष्टिहीन हैं. कोरोना के चलते पिता को कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में मनोज ने परिवार की मदद करने का तय किया और कैंडल (मोमबत्ती) बनानी शुरू कर दीं.

सूखी रोटी खा लेंगे, लेकिन भीख नहीं मांगेंगे

मनोज के परिवार की ज़िंदगी में पहले से ही संघर्ष थे, लेकिन कोरोना के चलते मुश्किलें और भी बढ़ गईं. पिता की उम्र भी 62 साल की हो गई है, लेकिन फिर भी परिवार का पेट पालने के लिए वो मज़दूरी करने को मजबूर हैं. हालांकि, कोरोना के चलते उनका ये रोज़गार भी छिन गया और लॉकडाउन में ढील के बाद भी उन्हें कोई काम नहीं मिल पाया.

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‘ठेकेदार के पास मज़दूर पूरे हो गए. दो-तीन जगह काम किया, जब पैसे लेने गए तो कहीं से आधे मिले, कहीं से मिले ही नहीं. मैं हाथ नहीं फैलाना चाहता. बच्चे बोलते हैं कि सूखी रोटी खा लेंगे लेकिन भीख नहीं मांगेंगे.’

-सुभाष

पिता की मदद के लिए मनोज ने बनाया प्लान

पिता को इस तरह मजबूर देख मनोज के दिमाग़ में मोमबत्ती बनाने का आईडिया आया. मनोज को लगा कि त्यौराह का सीज़न चल रहा है, ऐसे में वो कैंडल बेचकर परिवार की कुछ मदद कर सकेगा. ये प्लान स्वाभाविक भी था, क्योंकि मनोज कैंडल बनाना पहले से ही जानता था. 

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मनोज ने अपना प्लान पिता को बताया तो उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था. सुभाष ने कहा, ‘कहां से सामान लेना है कहां से क्या करना है, कुछ समझ नहीं आ रहा था.’

हालांकि, मनोज ने इस काम के लिए अपने दो दस्तों की मदद ली. मनोज ने उनसे दिल्ली से मोमबत्ती के दो सांचे मंगवाए. अच्छी बात ये रही कि परिवार की मदद के लिए कई लोग सामने आये. 

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सुभाष ने बताया, ‘काम नया था, इसिलए शुरू में तीन-चार दिन दिक्कत आई. मोम नहीं मिल रहा था. काम रह गया था. लगा समस्या खड़ी हो जाएगी.’

इन सबके बीच परिवार को बेहद ख़ुशी है कि उनका छोटा बेटा इस मुश्किल वक़्त में उनके साथ खड़ा है. मनोज ने तय कर लिया है कि हालात भले ही साथ ने दें, लेकिन वो हिम्मत नहीं हारेगा. वाकई में मनोज अपने परिवार के लिए जिस तरह से लड़ रह हैं, उसकी जितनी सराहना की जाए कम है. 

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