भाई ने ऑटो रिक्शा चलाकर उठाया पढ़ाई का ख़र्च, बहन बनी डिप्टी कलेक्टर

Abhay Sinha

‘मुश्किल हालात बने तो बुलंद हौसलों से जीत पाएंगे

 कश्ती में छेद हुए तो तैराकी का हुनर आज़माएंगे’

जी हां, सफ़लता की सड़क चुनौतियों की पगडंडी पर नंगे पांव चलने के बाद मिलती है. पैर में कई कांटे चुभते हैं, लेकिन जब मंज़िल तय होती है तो पीछे हमारे ख़ून के निशां बहुत से लोगों को रास्ता दिखाने के काम आते हैं. महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले के जोशी सांघवी गांव की रहने वाली वसीमा शेख की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. तमाम परेशानियों का मुक़ाबला कर उन्होंने महाराष्ट्र पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में महिला टॉपर्स लिस्ट में तीसरा स्थान पाया है.  

inquilab

‘मेरी मां को अब कड़ी धूप में दूसरे लोगों के खेतों में काम नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि मैं डिप्टी कलेक्टर बन गई हूं.’  

ये कहना वसीमा शेख का है. आठ लोगों के परिवार में कमाने वाले महज़ दो हैं. वसीमा की मां दूसरे के खेतों में काम करती है वहीं, बड़ा भाई ऑटो रिक्शा चलाता है. पिता मानसिक रूप से बीमार हैं जिसकी वजह से घर में आर्थिक तंगी थी. इतना काफ़ी नहीं था कि रिश्तेदारों की संकीर्ण सोच ने तकलीफ़ों को और बढ़ा दिया. उनका मानना था कि एक लड़की को पढ़ाना बेकार है क्योंकि वो एक दिन शादी होकर अपने घर चली जाएगी.  

वसीमा का गांव शराब की लत, बाल विवाह, अशिक्षा और घरेलू हिंसा जैसी बुराईयों से ग्रस्त है. लेकिन तमाम परेशानियों और संसाधनों की कमी के बावजूद उन्होंने एमपीएससी में टॉप किया.   

urducity

वसीमा ने अपनी इस सफ़लता का पूरा श्रेय अपनी मां दिया. उनकी मां ज़्यादा पढ़ नहीं सकीं थीं, लेकिन वो अपनी बेटी को आगे पढ़ाना चाहती थीं. वसीमा ने भी शिक्षा के महत्व को समझा. उसने अपने तालुका में SSC बोर्ड में टॉप किया और 2015 में यशवंतराव चव्हाण महाराष्ट्र ओपन यूनिवर्सिटी से आर्ट्स में स्नातक की पढ़ाई की.  

हालांकि, आगे की राह और भी कठिन थी. लोगों ने वसीमा को बताया कि उसे अच्छे से तैयारी करने के लिए कोचिंग ज्वॉइन करनी होगी, स्टडी मैटीरियल के लिए मोटी रक़म चुकानी होगी. शायद इन सबके लिए उसे अपने घर से दूर भी जाना पड़े. ऐसे वक़्त में वसीमा के बड़े भाई इमरान सामने आए और उन्होंने बीएससी के दूसरे साल में अपनी पढ़ाई छोड़कर ऑटो रिक्शा चलाना शुरू कर दिया ताकि उनकी छोटी बहन आगे पढ़ सके.  

dainikekmat

वसीमा ने छह माह कोचिंग करने के बाद सेल्फ़ स्टडी करना शुरू कर दिया. उनकी स्ट्रैटजी बहुत सिंपल थी कि मेंस में जाने से पहले ही सबकुछ पढ़ लो ताकि आख़िर में बस रिवीज़न ही बाकी रह जाए. उनकी ये मेहनत रंग लाई और मेंस क्लियर हो गया लेकिन इंटरव्यू में वो महज़ दो नंबर से बाहर हो गईं. हालांकि, वसीमा का नागपुर के बिक्री कर विभाग में एक ग्रेड दो अधिकारी के रूप में सेलेक्शन हो गया. उन्होंने नौकरी ज्वॉइन कर ली और अपने भाई को ग्रेजुएशन पूरा करने के लिए कहा. उस समय भी सिविल सेवा की तैयारी करती रहीं और इस बार उन्होंने सफ़लता हासिल कर ली.  

आपको ये भी पसंद आएगा
मिलिए Chandrayaan-3 की टीम से, इन 7 वैज्ञानिकों पर है मिशन चंद्रयान-3 की पूरी ज़िम्मेदारी
Chandrayaan-3 Pics: 15 फ़ोटोज़ में देखिए चंद्रयान-3 को लॉन्च करने का गौरवान्वित करने वाला सफ़र
मजदूर पिता का होनहार बेटा: JEE Advance में 91% लाकर रचा इतिहास, बनेगा अपने गांव का पहला इंजीनियर
कहानी गंगा आरती करने वाले विभु उपाध्याय की जो NEET 2023 परीक्षा पास करके बटोर रहे वाहवाही
UPSC Success Story: साइकिल बनाने वाला बना IAS, संघर्ष और हौसले की मिसाल है वरुण बरनवाल की कहानी
कहानी भारत के 9वें सबसे अमीर शख़्स जय चौधरी की, जिनका बचपन तंगी में बीता पर वो डटे रहे