पुलिस कस्टडी और जूडिशियल कस्टडी तो ख़बरों में कई बार सुना है, आज दोनों के मतलब समझ लो

Sanchita Pathak

न्यूज़ में आपने कई बार सुना होगा

‘आरोपी को 14 दिन के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा गया’ 
‘आरोपी को  7 दिन के लिए जुडिशियल कस्टडी में भेजा गया’

पर क्या आप पुलिस कस्टडी और जूडिशियल कस्टडी के बीच अंतर जानते हैं? बहुत से लोगों का ये मानना है कि अरेस्ट (गिरफ़्तारी) और कस्टडी (हिरासत में लेना) एक ही बात है. आज दोनों के बीच अंतर समझ लीजिए 

कस्टडी का मतलब? 

Live Law के एक लेख के अनुसार, कस्टडी या हिरासत का मतलब है किसी व्यक्ति पर नियंत्रण या निगरानी रखना. इसका मतलब ये नहीं है कि व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कहीं आ-जा नहीं सकता.

किसी व्यक्ति को हिरासत में रखना, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है इसलिए भारत के क़ानून व्यवस्था में हिरासत में रखने की प्रक्रिया है.  

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क्या हिरासत और गिरफ़्तारी एक हैं? 

नहीं, हिरासत में रखना और गिरफ़्तारी बिल्कुल एक नहीं हैं. गिरफ़्तारी यानि कि किसी व्यक्ति को पुलिस द्वारा बलपूर्वक क़ैद करके रखना. गिरफ़्तारी के बाद हिरासत हो सकती है लेकिन हिरासत के प्रत्येक मामले में गिरफ़्तारी हो ये ज़रूरी नहीं है.

उदाहरणअगर कोई व्यक्ति अदालत में आत्म समर्पण करता है तो उसे हिरासत में रखा जाएगा, उसकी गिरफ़्तारी नहीं होगी.  

पुलिस कस्टडी 

एक अभियुक्त को किसी अपराध के सिलसिले में पुलिस कस्टडी में भेजा जाता है ताकि पुलिस उस व्यक्ति पर और सुबूत इकट्ठा कर सके. पुलिस कस्टडी में किसी अभियुक्त को भेजने का दूसरा कारण है सुबूत नष्ट करने के प्रयास रोकना. पुलिस कस्टडी में अभियुक्त से पुलिस पूछताछ कर सकती है.

‘दण्ड प्रक्रिया संहिता’ के सेक्शन 57 के अनुसार किसी भी अभियुक्त को 24 घंटे से ज़्यादा पुलिस कस्टडी में नहीं रखा जा सकता. पुलिस कस्टडी में लिए गए अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करना अनिवार्य है. 
पुलिस कस्टडी में आरोपी पुलिस स्टेशन में बंद होगा और पुलिस किसी भी समय उससे पूछताछ कर सकती है.  
Hindustan Times की रिपोर्ट के अनुसार, एक्टर दीप सिद्धू को पहले 7 दिन के लिए पुलिस कस्टडी में भेजा गया था. NDTV की रिपोर्ट के अनुसार, इसके बाद सिद्धू को मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किया गया और 14 दिन की जूडिशियल कस्टडी में भेजा गया. 

NDTV

जुडिशियल कस्टडी 

पुलिस जब गिरफ़्तार किए गए अभियुक्त को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है तो मैजिस्ट्रैट के पास दो विकल्प होते हैं, अभियुक्त को पुलिस कस्टडी में भेजना, अभियुक्त को जूडिशियल कस्टडी में भेजना.

‘दण्ड प्रक्रिया संहिता’ के सेक्शन 167(2) के मुताबिक़ मैजिस्ट्रेट अभियुक्त को किसी भी तरह की कस्टडी में भेजने के लिए स्वतंत्र है. 
जूडिशियल कस्टडी में अभियुक्त मैजिस्ट्रेट की हिरासत में होता है और उसे जेल भेजा जाता है. जूडिशियल कस्टडी में रखे अभियुक्त से पूछताछ करने के लिए पुलिस को मैजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी पड़ती है.  
Money Control की रिपोर्ट के अनुसार, रिया चक्रवर्ती को 14 दिन जुडिशियल कस्टडी में भेजा गया था जो बाद में बढ़ा दी गई थी.  

Hindustan Times

India Legal Live की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस कस्टडी को मैक्सिमम 15 दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है. जिन अपराधों में 10 साल से ज़्यादा की सज़ा का प्रावधान है उनमें जुडिशियल कस्टडी को 90 दिनों के लिए बढ़ाया जा सकता है. इसके अलावा हर अपराध के लिए 60 दिनों तक की जुडिशियल कस्टडी दी जा सकती है.

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