सपा संरक्षक और उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का सोमवार को निधन (Mulayam Singh Yadav Death) हो गया. वे 82 साल के थे. 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव में जन्मे मुलायम सिंह प्रदेश और देश की राजनीति का एक बड़ा नाम थे. 60 के दशक में वो समाजवादी आंदोलन से जुड़े और धीरे-धीरे अखाड़े से निकलकर राजनीति में आ गए.
मगर उनका ये सफ़र आसान नहीं था. उनके आर्थिक हालात ऐसे थे कि उन्हें चुनाव जिताने के लिए पूरे गांव को उपवास रखना पड़ा था. आज हम आपको इसी से जुड़ा क़िस्सा बताने जा रहे हैं.
पहलवान को चित कर राजनीति के अखाड़े में उतरे Mulayam Singh Yadav
60 के दशक में राम मनोहर लोहिया समाजवादी आंदोलन के सबसे बड़े नेता थे. उत्तर प्रदेश में समाजवादियों की काफ़ी रैलियां होती थीं. उस समय मुलायम सिंह मास्टरी, कुश्ती और राजनीति तीनों पहियों पर संतुलन बनाए हुए थे.
उसी वक़्त जसवंतनगर में एक पहलवानी का मैच था. अखाड़े में एक भारी-भरकम पहलवान खड़ा था और सामने थे मुलायम सिंह यादव. अखाड़े में मुलायम सिंह ने उस पहलवान को धूल चटा दी. ये देखकर हर शख़्स हैरान रह गया. यहां तक कि तत्कालीन विधायक नत्थू सिंह भी, जो इस मैच को देखने वहां मौजूद थे. मुलायम की ताकत देखकर नत्थू सिंह ने उन्हें अपना शागिर्द बना लिया. (Mulayam Singh Yadav)
मास्टरी से राजनीति की ओर
मुलायम सिंह बीए की पढ़ाई करके टीचिंग कोर्स के लिए शिकोहाबाद चले गए. साल 1965 में वो करहल के जैन इंटर कॉलेज में पढ़ाने भी लगे. मगर 2 साल बाद ही 1967 में जसवंतनगर से विधानसभा का टिकट मिल गया. इस सीट पर उन्हें नत्थू सिंह ने उतारा था. लोहिया से पैरवी कर उनके नाम पर मुहर लग गयी. अब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे.
चुनाव लड़के के लिए नहीं थे पैसे
उस दौर में चुनाव लड़ना आज जितना महंगा नहीं था, लेकिन तब भी पैसा तो चाहिए था. लोगों के बीच प्रचार करना पड़ता था. उस दौर में मुलायम के पास साइकिल के अलावा कुछ नहीं था. तो उन्होंने इसी से प्रचार करना शुरू किया. वो अपने दोस्त के साथ साइकिल से ही प्रचार करने लगे.
उस दौरान एक दिलचस्प नारा भी सामने आया. उन्होंने एक वोट, एक नोट का नारा दिया. दरअसल, मुलायम सिंह चंदे में एक रुपया मांगते और ब्याज सहित लौटाने का वादा करते. इस तरह उन्होंने पैसा जुटाकर एक एंबेसडर कार ख़रीद ली. मगर समस्या यहां भी थी, क्योंकि, कार अपने आप नहीं चलती. उसके लिए भी ईंधन लगता है. नेता जी के पास इतना फंड भी नहीं था कि वो कार में ईंधन डलवाकर हर जगह प्रचार कर सकें.
गांव वालों ने रखा उपवास
मुलायम सिंह यादव की आर्थिक दिक्कतों को देख कर गांव वालों ने एक मीटिंग बुलाई. वहां सबकी एक राय थी कि हमारे गांव से पहली बार कोई विधायकी जैसा चुनाव लड़ रहा है. हम उनके लिए पैसे की कमी नहीं होने देनी है. ऐसे में तय हुआ कि हफ़्ते में एक दिन एक वक़्त का खाना नहीं खाएंगे. उससे जो अनाज बचेगा, उसे बेचकर अंबेस्डर में तेल भराएंगे. इस तरह मुलायम सिंह की गाड़ी में चुनाव प्रचार के लिए तेल भरवाया जाता था.
बता दें, मुलायम सिंह और गांव वालों की मेहनत रंग लाई और कांग्रेस प्रत्याशी लाखन सिंह चुनाव हार गए. मुलायम 28 साल की उम्र में विधायक बन गए. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. (Mulayam Singh Yadav)
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वे तीन बार UP के सीएम रहे और केंद्र सरकार में रक्षा मंत्री भी रह चुके हैं. इसके अलावा मुलायम सिंह 8 बार विधायक और 7 बार लोकसभा सांसद भी चुने जा चुके हैं. मौजूदा वक़्त में वो मैनपुरी सीट से लोकसभा सांसद थे.