आख़िर नागरिकता संशोधन बिल का उत्तर पूर्वी राज्य, ख़ासकर असम के लोग पुरजोर विरोध क्यों कर रहे हैं?

Sanchita Pathak

कड़े विरोध प्रदर्शन के बीच 11 दिसंबर को भारतीय संसद में नागरिकता संशोधन बिल को पास कर दिया गया. 


लोकसभा में पास होने के बाद ही बिल के विरोध में उत्तर पूर्व के लोग सड़कों पर उतर आये. ट्विटर पर जहां एक तरफ़ बिल के समर्थन में कई स्वर उठे वहीं दूसरी तरफ़ बिल के विरोध में भी कई आवाज़ें बुलंद हुईं. 

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क्या है नागरिकता संशोधन बिल? 


नागरिकता संशोधन बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़गानिस्तान में धर्म की वजह से ज़ुल्म झेल रहे ग़ैर मुस्लिमों को भारतीय नागरिकता देने की पेशकश करता है. 1955 के नागरिकता कानून में संशोधन के लिए ये बिल लाया गया है. इस बिल में पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान के हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई ग़ैरकानूनी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने की पेशकश करता है. 

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क्यों हो रहा है विरोध? 


1. भाषा और संस्कृति
असम के लोगों का मानना है कि अगर इस तरह लोगों को आकर बसने की छूट दे दी गई तो उनके ही राज्य में उनकी भाषा असमिया, माइनॉरिटी में होगी और बंगाली मैजॉरिटी में. इससे न सिर्फ़ असमिया भाषा, बल्कि असमिया संस्कृति भी हाशिये पर आ जाएगी. 

2. बांग्लादेश के लोगों का अनियंत्रित आगमन


विरोध प्रदर्शन करने वालों का मानना है कि इस बिल के बाद लाखों हिन्दू बांग्लादेशी और हिन्दुत्व अपनाकर मुस्लिम बांग्लादेशी असम में बस जायेंगे, जिससे असम की न सिर्फ़ भाषा, संस्कृति बल्कि प्राकृतिक संसाधनों पर भी अत्यधिक बोझ बढ़ेगा. 

3. आर्थिक हालात 


विरोध करने वालों की एक वजह ये भी है कि अगर ज़्यादा से ज़्यादा आकर राज्य में बसेंगे तो प्रदेश के आर्थिक हालात बद से बद्तर होंगे. रोज़गार के अवसर और कम हो जायेंगे. 

4. असम समझौते का उल्लंघन


प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि CAB असम अकोर्ड का उल्लंघन करता है. 
1979 में मंगलदोई में हुए लोकसभा बायपोल में अचानक से बढ़ी वोटर्स की संख्या ने लोगों का ध्यान खींचा. जनता को लगा कि ये बांग्लादेश से ग़ैरकानूनी ढंग से आये लोगों की वजह से हुआ है. नतीजा, 6 सालों तक ज़बरदस्त विरोध प्रदर्शन जिसमें 885 लोगों की क़ुर्बानी. ये विरोध 1985 के असम समझौते के साथ ख़त्म हुआ. इस समझौते के मुताबिक़ असम में उसी प्रवासी को क़ानूनी तौर पर वैध माना जायेगा जो 25 मार्च 1971 के पहले आया हो. दूसरे राज्यों के लिए साल रखा गया 1951. इसके बाद जो भी असम में आयेगा उसे एनआरसी (नेशनल रेजिस्ट्री ऑफ़ सिटिज़न्स) करके देश से बाहर किया जायेगा. CAB के मुताबिक़ नई तारीख है 2014. 

Navbharat Times

असम के हालात 


असम में विरोध प्रदर्शन बहुत बड़ा रूप ले चुका है. गुवाहाटी विरोध का केन्द्रबिन्दु बन गया है. गुवाहाटी, डिब्रुगढ़, नौगांव जैसे शहर थम गए हैं. लोग सिर्फ़ सड़कों पर उतर रहे हैं. बीते बुधवार को गुवाहाटी में कर्फ़्यू लगा दिया गया इसके बावजूद लोग प्रदर्शन करते दिखे. 

पूरे राज्य में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सुविधाएं बंद कर दी गई हैं. 

NDTV

नेताओं के कथन 


असम के कई नेताओं ने इस बात को माना है कि असम में हालात ठीक नहीं हैं. इंटरनेट बंद है पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके असम के लोगों को आश्वासत दिया कि उनके हक़ कोई नहीं छीनेगा. 

अभी तक असम या अन्य पूर्वोत्तर राज्य से किसी के हताहत होने की ख़बर नहीं आई है. 

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