गुस्सा आने पर दरवाज़ा तो ख़ूब तेज़ी से बंद किया होगा, अब इसके पीछे की साइंस भी जान लो

Vidushi

Why We Slam Door : आपने अक्सर देखा होगा कि कई लोग गुस्सा (Angry) होने पर ज़ोर से दरवाज़ा बंद कर देते हैं? या कुछ लोग बर्तन पटकने लगते हैं. हो सकता है ऐसा आपके साथ भी होता हो. हालांकि, क्या आप जानते है कि ऐसा क्यूं होता है और साइंस इसके बारे में क्या कहती है?

आइए आपको इस प्रक्रिया के बारे में थोड़ा विस्तार से बताते हैं.

क्या है इसके पीछे का साइंस?

ज़्यादातर लोग घरों के दरवाज़ों पर अपना गुस्सा निकालते नज़र आते हैं. साइंस की मानें तो ये एक तरह का वेटिंग इफ़ेक्ट है, जिससे गुस्सा कम हो जाता है. उनके मुताबिक, जैसे ही हम कोई दरवाज़ा पार करते हैं, दूसरे कमरे के इमोशंस हल्के पड़ जाते हैं. साइंस का कहना है कि जैसे ही हम किसी कमरे से होते हुए दरवाज़े के पास पहुंचकर उसे पार करते हैं, वैसे ही हम पुरानी चीज़ें भूल जाते हैं. हालांकि, ये प्रक्रिया बहुत थोड़े सेकेंड के लिए होती है. लेकिन हमारा पारा हाई से लो करने के लिए इतना ही समय काफ़ी होता है. इसको डोर थ्रेशहोल्ड थ्योरी कहा जाता है.

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साल 2006 में हुई थी इस पर स्टडी

इस पर साल 2006 में गेब्रियल ए रेडवेन्सकी ने एक स्टडी भी की थी. उन्होंने इस दौरान 300 लोगों पर अपना पहला एक्सपेरिमेंट किया था. इस स्टडी से पता चला था कि जैसे ही लोग एक से दूसरे कमरे में आने के लिए दरवाज़े को पार करते हैं, तो कुछ देर के लिए पार किए वाले कमरे की यादें धुंधली पड़ने लगती हैं. फिर चाहे वो गुस्से में दरवाज़े बंद करके आए हो या नॉर्मल दरवाज़ा पार करके आए हों. इस पर साल 2021 में एक और अध्ययन में पाया गया कि अगर वर्चुअल तरीक़े से भी लोग एक से दूसरे कमरे में जाएं, तो भी पार किए गए कमरे की यादें धुंधली पड़ने लगती हैं. यही वजह है कि कोई भी मज़बूत इमोशन जगह बदलने से हल्का पड़ने लगता है.  

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दिमाग को बैलेंस करती है दरवाज़े की आवाज़

साइंस का ये भी मानना है कि दरवाज़े बंद करने से जो आवाज़ होती है, वो दिमाग को बैलेंस करने में मदद करती है. आवाज़ आने के बाद मन में गिल्ट का अनुभव होता है, जो इस बात का एहसास दिलाता है कि थोड़ी बहुत हमसे भी गलती हुई है. यही वजह है इससे गुस्सा काबू में आने लगता है. वैज्ञानिक मानते हैं कि आवाज़ से इमोशन का गहरा रिश्ता है. अगर आप किसी इमोशन में आवाज़ निकालते हैं, तो ये काफ़ी हद तक वेंट आउट होने में मदद करता है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर एक्सट्रीम इमोशन की स्थिति में हम चीखें, तो इससे भावनाएं कंट्रोल हो जाती हैं. इससे एंडॉर्फिन हॉर्मोन निकलता है, जिससे स्ट्रेस कम होता है.

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