मानवीय क्षमताओं का कोई हिसाब नहीं है! हमने दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को भी डंपिंग ज़ोन बना दिया

Kundan Kumar

अगर नगर पालिका वालों ने कूड़ा घर से उठवाने की व्यवस्था नहीं की है, तो हम-आप कूड़ा फेंकने कहां जाते हैं? ज़्यादा से ज़्यादा घर से 100-200 मीटर के रेंज में रखे डस्टबीन तक. लेकिन कुछ लोग बहुत मेहनती होते हैं, वो कूड़ा फ़ेकने एवरेस्ट तक पहुंच जाते हैं. मज़ाक नहीं कर रहा! दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को कुछ लोगों ने कचरा घर बना दिया है.

अगर आपका कभी एवरेस्ट जाना हुआ (आपको ख़ुद पर यकीन न हो, मुझे आप पर पूरा यकीन है)! तो आप देखेंगे कि पूरे रास्ते में इंसान द्वारा फैलाया कचरा दिखेगा.

18 बार एवरेस्ट की चढ़ाई करने वाले Pemba Dorje Sherpa कहते हैं कि ये बहुत घिनौना है और आंखों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता. इस पहाड़ पर कई टन कचरा पड़ा हुआ है.

पिछले दो दशक में माउंट एवरेस्ट जाने वालों की संख्या में काफ़ी इजाफ़ा हुआ है. सिर्फ़ इसी साल अब तक 600 लोग माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई कर चुके हैं. ये लोग अपने साथ कई ज़रूरत का सामान ले जाते हैं और ज़रूरत के बाद उसे रास्ते में छोड़ते जाते हैं.

पांच साल पहले नेपाल सरकार ने एक स्कीम तैयार की थी. माउंट एवरेस्ट जाने वाले हर टीम के चार हज़ार डॉलर वापस कर दिये जाएंगे अगर टीम का हर सदस्य वापसी में अपने साथ आठ किलो कूड़ा ले लाता है. यही ऑफ़र तिब्बत वाले हिस्से के हिमालय के लिए वहां की सरकार ने भी दिया था. साथ ही साथ, इस काम को न कर पाने वाले पर्वतारोही पर सौ डॉलर का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान दिया.

साल 2017 में पर्वातारोहियों ने नेपाल में 25 टन कूड़ा और 15 टन मानव कचरा एवरेस्ट के रास्ते उतारा. Sagarmatha Pollution Control Committee ने कहा है कि इस साल इससे भी ज़्यादा कूड़ा नीचे लाया जा चुका है. हालांकि ये कुल कूड़े का मात्र छोटा सा अंश है. आधे पर्वतारोही सिर्फ़ स्कीम के तहत कूड़ा वापस ला पाते हैं.

पहले पर्वातारोही अपने साथ इस्तेमाल के लिए अपना निजी किट ले कर जाते थे. अब नौसिखिया पर्वतारोही स्थानीय लोगों की मदद से पर्वत की चढ़ाई करने पहुंच जाते हैं. उनका अधिकतर सामान भी साथ में गया स्थानीय शेरपा ही उठाता है, चूंकी साथ में गए व्यक्ति के पास पहले से ही बहुत वज़न होता है, इसलिए वो वापसी में कूड़ा उठाने की हालत में नहीं होता.

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